विश्व महिला स्वास्थ्य दिवस: पोलियो की तर्ज पर गर्भवती महिलाओं का हो टीकाकरण

28 मई को हर साल विश्व महिला स्वास्थ्य दिवस (International Day of Action for Women’s Health 2018) पूरे विश्व में मनाया जाता है। ऐसे में महिलाओं के स्वास्थ्य (Health)  की बात करें तो भारत आज भी कई यूरोपीय (Europe) और एशियाई देशों (Asian  Country) से पिछड़ा हुआ है.

 

आज भी देश में गर्भवती महिलाओं (Pregnant Women) के टीकाकरण को बहुत अजीब तरह से देखा जाता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा सरकार के ‘मिशन इंद्रधनुष’ (Mission Indradhanush) से तस्वीर थोड़ी बहुत ही सही, लेकिन बदली है।

 

भारत आज भी महिला स्वास्थ्य (Women Health) को लेकर कई यूरोपीय और एशियाई देशों से पिछड़ा हुआ है, जिसके लिए पोलियो (Polio) की तर्ज पर अभियान चलाने की जरूरत है।

 

एक गर्भवती महिला जब बच्चे को जन्म देती है, तो उस दौरान जच्चा और बच्चा दोनों में ही कई तरह के संक्रमण (Infection)  होने की आशंका बनी रहती है। आमतौर पर देखा गया है की पूरा ध्यान नवजात शिशु (New Born Baby)  पर रहता है लेकिन महिला के स्वास्थ्य की अनदेखी कर दी जाती है। डब्ल्यूएचओ (World Health Organization) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में बच्चों को जन्म देने के दौरान हर घंटे पांच महिलाओं की मौत हो जाती है।

 

नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम ऑफ इंडिया (National Neonatology Forum Of India)  के अध्यक्ष डॉ. अजय गंभीर कहते हैं, “गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता लाने की जरूरत है। डिलीवरी के समय शरीर से अत्यधिक खून या किसी अन्य वजहों से भी बच्चे से मां को संक्रमण होने का खतरा बना रहता है, इसलिए बच्चे के साथ-साथ मां को बचाना भी बहुत जरूरी होता है।”

 

वह आगे कहते हैं, “भारत सरकार ने 2010 में ‘आरएमएमएचए’ योजना बनाई थी, लेकिन 2014 में इसे वापस ले लिया गया। वैक्सीन (Vaccine)  संबंधी यह योजना बहुत मददगार थी। हमारे देश में समस्या यह है कि जो नई वैक्सीन बाजार में आ रही हैं, उसे लेकर जागरूकता की कमी है।”

 

उन्होंने कहा, “नई वैक्सीन की बजाय अभी भी पुरानी वैक्सीन ही उपयोग में लाई जा रही है। उदाहरण के तौर पर गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के लिए टीटी की जगह टीडी वैक्सीन (TD Vaccine)  लाई गई, लेकिन अभी भी टीटी वैक्सीन (TT Vaccine)  ही चलन में है। देश में पोलियो के खात्मे के लिए अभियान शुरू किया गया, ठीक उसी तरह गर्भवती मां के टीकाकरण के लिए भी अभियान शुरू करने की जरूरत है। सरकार ने ‘एमएमआर’ यानी ‘खसरा, मम्प्स और रूबेला’ की दो खुराक देना शुरू किया है, जो महिलाएं गर्भवती नहीं हैं, वे भी इसे ले सकती हैं। इनके अभाव में बच्चे में मोतियाबिंद (Cataracts) होने की आशंका रहती है।”

 

गर्भवती महिलाओं में टीकाकरण से जुड़ी कई भ्रांतियों के बारे में वह कहते हैं, “ये सच है कि कई वैक्सीन ऐसी हैं, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन उसकी पूरक वैक्सीन को गर्भावस्था के छह सप्ताह में देना जरूरी हो जाता है, ताकि मां और आने वाले बच्चे को नुकसान न हो।”

 

भारत (India)  गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण में विकसित देशों के साथ-साथ कई विकासशील देशों (Development Country) से भी बहुत पीछे है। इसके बारे में डॉ. अजय कहते हैं, “अभी हमारी पहुंच सिर्फ 60 फीसदी महिलाओं तक ही है, जो कई एशियाई और पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है। इस दिशा में अभी बहुत काम करना होगा। सरकार ने जब से ‘मिशन इंद्रधनुष’ शुरू किया है, इस दिशा में सकारात्मक काम हुआ है।”


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