नाक, कान और गले के रोग

 

 

कान के रोग

 

 

कान की कई अलग अलग प्रकार की समस्याएँ होती हैं। कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी हैं जो की कान की बीमारी के साथ पैदा होते हैं, जबकि कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हे की समय के साथ साथ धीरे धीरे कान के रोग हो जाते हैं। कान की बीमारियां विशेष रूप से चिंताजनक हो सकती हैं और वे दर्द और असुविधा का कारण बन सकती हैं।

 

 

कान के रोग के प्रकार

 

 

  1. कान का संक्रमण

 

कान का संक्रमण रोग बैक्टीरिया के कारण होने वाला रोग है जो कान या ऊतक में टीयर के माध्यम से प्रवेश करता है।

 

 

  1. फोड़े

 

कान के कनाल में उगने वाला फोड़ा या चक्र अक्सर जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। ये संक्रमण आमतौर पर त्वचा को क्षति पहुंचने के कारण शुरू होता है।

 

 

  1. ओटाइटिस मीडिया

 

इस रोग में कान के मध्य भाग में सूजन आ जाती है जो संक्रमण के साथ या बिना उसके कान में तरल पदार्थ का निर्माण करती है।

 

 

  1. प्रेस्बाइक्यूसिस

 

प्रेस्बाइक्यूसिस उम्र बढ़ने के फलस्वरूप होने वाली श्रवण हानि होती है। ये बीमारी ज्यादातर 65 साल या उससे अधिक आयु के व्यक्ति को होती है।

 

 

  1. स्विमर्स ईयर

 

यह रोग तब होता है जब गर्मी और नमी कान के अंदर की त्वचा की परत पर सूजन का कारण बनती है।

 

 

  1. ग्लू ईयर

 

ये ओटाइटिस मीडिया का एक गंभीर प्रकार है। कान के पर्दे के पीछे मध्य कान में मोटे या चिपचिपे तरल पदार्थ का दीर्घकालिक निर्माण, सुनने की शक्ति को नुक्सान पहुंचाता है।

 

 

गले के रोग

 

 

गले की बिमारियों का इलाज समय पर करवाना चाहिए क्यूंकि गले की कुछ बीमारियां ऐसी भी होती हैं जो की गंभीर बीमारी का रूप ले सकती हैं जैसे की गले का कैंसर

 

 

गले के रोग के प्रकार

 

 

  1. घेंघा (गले की सूजन)

 

थायरॉइड ग्रंथि का आकार जब बढ़ जाता है उसे घेंघा कहा जाता है। थायरॉइड एक तितली के प्रकार की ग्रंथि होती है, जो गर्दन के अंदर ठीक कॉलरबोन के ऊपर स्थित होती है। आमतौर पर घेंघा रोग दर्दरहित होता है, लेकिन अगर थायरॉइड ग्रंथि का आकार अधिक बढ़ जाये तो इससे खांसी, निगलने व सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।

 

 

  1. टान्सिलाइटिस (गले की गांठ)

 

यह एक ऐसा रोग है जिसमे मरीज़ को ऐसा महसूस होता है जैसे की उसके गले में गाँठ हो गई हो, जबकि कई बार गले में ऐसी कोई गाँठ नहीं बनती। कई बार ऐसा भी महसूस होता है की गाँठ खत्म हो गई हो पर कुछ समय बाद वह फिर से महसूस होने लगती है।

 

 

  1. स्वरभंग (आवाज़ का बैठ जाना)

 

खराब आवाज़, भारी आवाज़ को ही स्वरभंग या गला बैठना कहते हैं। ठंड लगने के कारण या ठंड के शरीर में बैठ जाने से आवाज़ अटकने लगती है। ज्यादा ज़ोर से बोलने से या ज्यादा देर तक लगातार बोलने से या गाने से भी यह रोग हो जाता है।

 

 

नाक के रोग

 

 

आयुर्वेद की माने तो नाक के 15 तरह के रोग होते हैं। जिनमे प्रमुख रोग हैं – पीनस, नाक का पकना, ज्यादा छींके आना, नाक से पतला या गाढ़ा पदार्थ निकलना, नाक में सूजन, सांस लेने में परेशानी आदि।

 

 

नाक के रोग के प्रकार

 

 

1.नकसीर फूटना (नाक से खून निकलना )

 

वैसे तो नाक से खून निकलना अपने आप में कोई रोग नहीं है लेकिन जब यह बार बार होता है तो यह रोग बन जाता है जिसका इलाज कराना बहुत ही जरुरी है। इस रोग के हो जाने से व्यक्ति की नाक से खून निकलता है। कभी कभी तो नाक से खून निकलने के कारण यह खून ग्रासनली से होता हुआ पेट में चला जाता है।

 

 

2.साईनोसाइटिस

 

गालों की हड्डियों में दर्द और नाक के अंदरूनी हिस्से में जलन को साईनोसाइटिस कहा जाता है। गालों की हड्डीयों एवं माथे पर सूजन भी हो जाती है। इस रोग के कारण रोगी की आवाज़ भारी हो जाती है तथा उसकी जीभ से स्वाद पहचानने की शक्ति कम हो जाती है।

 

 

3.नासिका प्रदाह

 

इस रोग में नाक के अन्दर कभी-कभी घाव, फुन्सी या जख्म उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे में नाक में खुजली व जलन होने लगती है जिसे नासिका प्रदाह कहते हैं। अगर इसका समय पर इलाज नहीं करवाया जाता है तो यह समस्या जानलेवा भी हो सकती है इसलिए ऐसी समस्या होने पर डॉक्टर से परामर्श करे और जल्द से जल्द उपचार करवाए।

 

 


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