ऑटिज्म एक प्रकार का नेत्र परीक्षण उपकरण है जो मस्तिष्क के उस हिस्से के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है जहां ये विकार विकसित होता है। संस्थान के निदेशक और इस अध्ययन के सह-लेखक फॉक्स के मुताबिक, ‘काफी शोध के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आंखों की प्रतिक्रियाएं हमारे दिमाग में एक खिड़की की तरह काम करती हैं। यह कई न्यूरोलॉजिकल और विकासात्मक विकारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ पर एक बात ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि ऑटिज्म से संबंधित बहुत से शोध बच्चों पर केंद्रित होते हैं क्योंकि इस पर हुए कुछ शोध से पता चलता है कि 3 साल से पहले शुरू होने पर इसका इलाज सबसे प्रभावी होता है। फिर भी, बच्चों के लिए डिज़ाइन किए गए कई विकल्प वयस्कों की भी मदद कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि इसके कितने प्रकार होते हैं।
ऑटिज्म कितने प्रकार के होते हैं? (What are the types of autism in Hindi)
ऑटिज्म के तीन प्रकार होते हैं :
एस्परगर सिंड्रोम (Autistic disorder): इस सिंड्रोम को ऑटिस्टिक डिसऑर्डर का सबसे हल्का रूप माना जाता है। इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति कभी-कभी अपने व्यवहार से अजीब लग सकते हैं, लेकिन कुछ विषयों में उनकी बहुत रुचि हो सकती है।लेकिन, इन लोगों को मानसिक या सामाजिक व्यवहार से संबंधित कोई समस्या नहीं होती है।
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Asperger’s syndrome): यह ऑटिज्म का सबसे आम प्रकार है। ऑटिज्म के इस विकार से प्रभावित लोगों को सामाजिक व्यवहार और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने में कठिनाई होती है। इसके अलावा असामान्य चीजों में रुचि लेना, असामान्य व्यवहार करना, हिचकी आना, हकलाना या बार-बार बात करना जैसी आदतें भी ऑटिस्टिक डिसऑर्डर के लक्षण हो सकते हैं। कुछ मामलों में बौद्धिक क्षमता में भी कमी आती है।
व्यापक विकास संबंधी विकार (Pervasive Developmental Disorder): इसे प्रकार का आत्मकेंद्रित नहीं माना जाता है। केवल कुछ स्थितियों में ही लोग इस विकार से पीड़ित होने के लिए जाने जाते हैं।
ऑटिज्म का इलाज कैसे होता है? (How is autism treated in Hindi)
ऑटिज़्म के उपचार का लक्ष्य इसके लक्षणों को कम करके और विकास और सीखने में सहायता करके मरीज के कार्य करने की क्षमता को अधिकतम करना है। इससे सामाजिकता, संचार, कार्यात्मक और व्यवहार कौशल सीखने में मदद कर सकता है।
ऑटिज़्म के इलाज इसके प्रकार पर निर्भर करता हैं इसके विकल्पों में शामिल हैं:
- व्यवहार और संचार उपचार (Behavior and communication therapies): कई कार्यक्रम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार से जुड़ी सामाजिक, भाषा और व्यवहार संबंधी कठिनाइयों की श्रेणी को संबोधित करते हैं। यह एक तरके से उपचार की शुरुआती चरण में आता है।
- शैक्षिक उपचार (Educational therapies): ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चे में अक्सर उच्च संरचित शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं। सफल कार्यक्रमों में आमतौर पर विशेषज्ञों की एक टीम और सामाजिक कौशल, संचार और व्यवहार में सुधार के लिए विभिन्न गतिविधियों को शामिल किया जाता है।
- पारिवारिक उपचार (Family therapies): माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य सीख सकते हैं कि कैसे अपने बच्चों के साथ खेलना और बातचीत करना है जो सामाजिक संपर्क कौशल को बढ़ावा देते हैं, इसमें डॉक्टर मरीज की समस्या व्यवहार का प्रबंधन करते हैं, और दैनिक जीवन कौशल और संचार सिखाते हैं।
- अन्य उपचार (Other therapies): आपके बच्चे की जरूरतों के आधार पर, संचार कौशल में सुधार के लिए भाषण चिकित्सा, दैनिक जीवन की गतिविधियों को सिखाने के लिए व्यावसायिक चिकित्सा, और आंदोलन और संतुलन में सुधार के लिए भौतिक चिकित्सा फायदेमंद हो सकती है। एक मनोवैज्ञानिक समस्या व्यवहार को संबोधित करने के तरीकों की सिफारिश कर सकता है।
ऑटिज्म का इलाज कहां कराएं? (Where to get treatment for autism in Hindi)
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ऑटिज्म के लक्षण क्या होते हैं? (What are the symptoms of autism in Hindi)
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीने (या उससे भी पहले) की उम्र में दिखाई देते हैं जो हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। ये समस्याएं जीवन भर रह सकती हैं। ऑटिज्म से पीड़ित नवजात शिशु विकास के निम्नलिखित लक्षण नहीं दिखा सकते हैं:
- बार-बार बोलना या बड़बड़ाना
- हाथों के बल चलकर दूसरों के पास जाना
- किसी चीज़ की तरफ इशारा करना
- आंखों में आंखें मिलाकर ना देखना या आई-कॉन्टैक्ट ना बनाना
- अकेले रहना
- खेल-कूद में हिस्सा ना लेना या रूचि ना दिखाना
- दूसरों से सम्पर्क ना करना
- अलग तरीके से बात करना जैसे प्यास लगने पर ‘मुझे पानी पीना है’ कहने की बजाय ‘क्या तुम पानी पीओगे’ कहना
- खराब व्यवहार करना
- गुस्सैल, बदहवास, बेचैन, अशांत और तोड़-फोड़ मचाने जैसा व्यवहार करना
- किसी काम को लगातार करते रहना जैसे, झूमना या ताली बजाना
- एक ही वाक्य लगातार दोहराते रहना
- दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को ना समझ पाना
- दूसरों की पसंद-नापसंद को ना समझ पाना
- किसी विशेष प्रकार की आवाज़, स्वाद और गंध के प्रति अजीब प्रतिक्रिया देना
- पुरानी स्किल्स को भूल जाना
- खुद को चोट लगाना या नुकसान पहुंचाने के प्रयास करना
ऑटिज्म की जांच के लिए टेस्ट? (Diagnosis of autism in Hindi)
अभी इसके लिए कोई भी प्रभावी टेस्ट नहीं है। वैसे तो माता-पिता को उनके बच्चे के व्यवहार और विकास पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है। ताकि, यह डिसऑर्डर के निदान में मदद करता है। रोगी की देखने, सुनने, बोलने और मोटर समन्वय की क्षमता का मूल्यांकन विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। मरीज को या बच्चे को ऑटिज्म से पीड़ित तब माना जाता है जब उनमें ऐसे कोई संकेत दिखते हैं:
- एक ही काम या गतिविधि को बार-बार करना
- विभिन्न तरह की सामाजिक स्थितियों में लोगों के साथ बातचीत करने में कठिनाई होना
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