डिप्थीरिया (Diphtheria) एक प्रकार के इंफेक्शन से फैलने वाली बीमारी है। इसे आम बोलचाल में गलाघोंटू भी कहा जाता है। यह कॉरीनेबैक्टेरियम (Corinabacterium) बैक्टीरिया के इंफेक्शन (Infection) से होता है। चपेट में ज्यादातर बच्चे आते हैं। हालांकि बीमारी बड़ों में भी हो सकती है। बैक्टीरिया सबसे पहले गले में इंफेक्शन करता है। इससे सांस नली तक इंफेक्शन फैल जाता है। इंफेक्शन की वजह से एक झिल्ली बन जाती है, जिसकी वजह से मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। एक स्थिति के बाद इससे जहर निकलने लगता है जो खून के जरिए ब्रेन और हार्ट तक पहुंच जाता है और उसे डैमेज करने लगता है। इस स्थिति में पहुंचने के बाद मरीज की मौत का खतरा बढ़ जाता है। डिप्थीरिया कम्यूनिकेबल डिजीज है यानी यह बड़ी आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है।
डिप्थीरिया कॉरीनेबैक्टीरियम डिप्थीरी नामक जीवाणु से पैदा होता है। यह जीवाणु एक शक्तिशाली विष छोड़ता है जिससे शरीर के ऊतकों और अंगों को नुकसान पहुंचता है। हालांकि विकसित देशों में डिप्थीरिया होने की दर काफी कम होती है या न के बराबर होती है, पर यह रोग अभी भी दुनिया भर में अपनी भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2000 में दुनिया भर में डिप्थीरिया के लगभग 30,000 मामले दर्ज किए गए और इस रोगे से लगभग 3,000 लोगों की मृत्यु हुई। वर्ष 2010 में दुनिया भर में डिप्थीरिया के 4,187 मामले पाए गए, जो डिप्थीरिया के मामलों की वास्तविक संख्या को कम कर आंकने के कारण हो सकता है।
डिप्थीरिया बीमारी के लक्षण
- उच्च तापमान वाला बुखार।
- गले में खराश।
- बैठी हुई आवाज (गहरा और भारी स्वर)।
- कंपकंपी।
- गर्दन में सूजी हुई ग्रंथियाँ।
- मलेस (शारीरिक कष्ट)।
- थकावट।
- निगलने और साँस लेने में कठिनाई।
- निगलने के दौरान दर्द।
- नाक से द्रव बहना।
- मोटी, ग्रे रंग की झिल्ली आपके गले और टॉन्सिल्स को ढंक लेती है।
- डिप्थीरिया बीमारी का कारण।
- कोराइनीबेक्टेरियम डिफ्थीरी द्वारा डिफ्थीरिया होता है। इसे फ़ैलाने में सहायक हैं।
- हवा द्वारा लाए गए कण।
- व्यक्तिगत उपयोग की दूषित वस्तुएँ।
- घरेलू दूषित वस्तुएँ।
- संक्रमित घाव को छूने से।
डिप्थीरिया बीमारी का बचाव
डिप्थीरिया से एंटीबायोटिक दवाओं व टीकों द्वारा बचा जा सकता है। टीकाकरण से डिप्थीरिया के मामलों और मृत्यु-दर में गिरावट आई है लेकिन यह अभी भी बच्चों में एक प्रचलित बीमारी है। डिप्थीरिया के टीके को डीटीएपी (DTAP) नाम से जाना जाता है और यह आमतौर पर काली खांसी और टेटनस के टीके के साथ दिया जाता है। यह टीका पांच खुराकों में निम्नलिखित आयु वर्ग के बच्चों को दिया जाता है.
- दो महीने
- चार महीने
- छः महीने
- पंद्रह से अठारह महीने
- चार से छः साल
कुछ दुर्लभ मामलों में बच्चों को इस टीके से एलर्जी हो जाती है जिससे दौरे या पित्ती हो सकते हैं। टीके का असर दस सालों तक ही रहता है, इसीलिए आपके बच्चे को बारह साल के आसपास फिर से टीके की आवश्यकता होगी। बड़ों को यह सलाह दी जाती है कि वह डिप्थीरिया-टेटनस-काली खांसी के टीके एक ही बार में लगवा लें और फिर हर दस साल बाद आपको टेटनस-डिप्थीरिया का टीका लगाया जाएगा।
डिप्थीरिया बीमारी का उपचार
डिप्थीरिया एक गंभीर बीमारी है जिसका इलाज डॉक्टर निम्नलिखित दवाओं से करते हैं –
एंटी-टॉक्सिन (Antitoxin):
अगर डॉक्टर को डिप्थीरिया का संदेह होता है, तो संक्रमित व्यक्ति या बच्चे को एंटी-टॉक्सिन दवा दी जाती है। नस या मांसपेशी में एंटी-टॉक्सिन का टीका लगाने से शरीर में मौजूद डिप्थीरिया के विषाक्त पदार्थों का प्रभाव बेअसर हो जाता है। एंटी-टॉक्सिन देने से पहले, डॉक्टर इस बात की जांच करते हैं कि क्या रोगी को एंटी-टॉक्सिन से कोई एलर्जी है या नहीं। इससे एलर्जी वाले व्यक्तियों को पहले एंटी-टॉक्सिन के प्रति असंवेदनशील बनाया जाता है। इसके लिए डॉक्टर रोगी को पहले एंटी-टॉक्सिन की कम खुराक देते हैं और फिर धीरे-धीरे खुराक बढ़ा देते हैं।
एंटीबायोटिक दवाएं (Antibiotics):
पेनिसिलिन (Penicillin) और एरिथ्रोमाइसिन (Erythromycin) जैसी एंटीबायोटिक दवाओं से भी डिप्थीरिया का इलाज किया जाता है। एंटीबायोटिक दवाओं से शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को मारा जाता है और संक्रमण ठीक किए जाते हैं। जिन लोगों या बच्चों को बार-बार डिप्थीरिया होता है, उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। डिप्थीरिया हर उस व्यक्ति में फ़ैल सकता है जिसे इसका टीका नहीं लगा है इसीलिए इससे ग्रस्त व्यक्ति को अस्पताल में अलग रहने की आवश्यकता होती है। छोटे बच्चों या बूढ़े लोगों को खासकर डिप्थीरिया से ग्रस्त व्यक्ति से अलग रखना चाहिए। अगर गले में मौजूद ग्रे परत से सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो डॉक्टर इसे हटा भी सकते हैं।
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