राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस (National Deworming Day 2018) एक दिन का कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य शिक्षा और जीवन की गुणवत्ता तक पहुँच , पोषण संबंधी स्थिति एवं बच्चों के समग्र स्वास्थ्य में सुधार के लिये बच्चों को परजीवी आंत्र कृमि संक्रमण से मुक्त करने के लिये दवा उपलब्ध कराना है।
इस कार्यक्रम में स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के मंच के माध्यम से 1-19 वर्ष की आयु समूह के स्कूल और आंगनवाड़ी से जुड़े सभी बच्चों को शामिल किया जाता है। बच्चों को कृमि मुक्त करने के लिये एलबेंडाजोल नामक टैबलेट दी (Albendazole tablets) जाती है।
यह कार्यक्रम हर वर्ष 10 फरवरी और 10 अगस्त को आयोजित किया जाता है। अगर कोई भी बच्चा किसी वजह से, खासतौर से गैरहाजिर होने या बीमार होने से राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस में नहीं शामिल हो पाया तो उसे 15 फरवरी को दवा दी जाती है।
राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस सभी स्वास्थ्य कर्मियों, राज्य सरकारों और दूसरे हितधारकों को मिट्टी-संचारित कृमि संक्रमण के खात्मे के लिये प्रयास करने हेतु प्रेरित करता है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने 9 फरवरी 2016 को हैदराबाद में आयोजित एक कार्यक्रम कें राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस का शुभारंभ किया था .
नवजात शिशुओं और स्कूली बच्चों को परजीवी कृमि संक्रमण से संरक्षित करने के लिए और इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष 10 फरवरी को नेशनल डीवॉर्मिंग डे के रूप में मनाया जाता है.
सर्वप्रथम इस दिवस का आयोजन वर्ष 2015 में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा किया गया था. जिसके अनतर्गत 11 राज्यों/संघ शासित प्रदेश के 277 जिलों के 1 से 19 वर्ष आयु के बच्चों को कवर किया गया था.
इस दिवस का आयोजन संयुक्त रूप से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (ministry of women and child development) द्वारा किया जाता है.
इसके अतिरिक्त केन्द्रीय पंचायती राज मंत्रालय, आदिवासी मामलों का मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय भी इस दिवस के अन्य आयोजक हैं.
यह संक्रमण मुख्य रूप से मृदा संचरित हेल्मिंथ्स (Soil Transmitted Helminths) अर्थात पेट के परजीवी से होता है. यह परजीवी पेट में पाए जाते हैं यह खुले में शौच से संक्रमित (infection) हुई मृदा को छूने आदि से बच्चों की आतों में पहुँच कर अंडे देते हैं और बच्चों के पोषण को अपने विकास में प्रयोग करते हैं. अंततः यह क्रिया कुपोषण, अनेमिया, मानसिक रोग और कुष्ठ रोग (leprosy) जैसी बीमारियों को जन्म देती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार विश्व में सबसे ज्यादा एसटीएच भारत में हैं जिसके कारण 1 से 14 वर्ष के 220 मिलियन बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा है.
इस कैम्पेन के अंतर्गत बच्चों को स्कूल और आंगनवाड़ी स्तर पर डीवॉर्मिग गोलियां का वितरण किया जाएगा. इसके अतिरिक्त बच्चों को नाखून काटने , हाथ धोने, अपने पैरों को अच्छे से ढकने और स्वच्छता बनाए रखने के लिए शौचालय का उपयोग करने के लिए शिक्षित किया जाएगा.
राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस के लाभ
- राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस जैसे कार्यक्रमों के कारण न केवल स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी आ रही है बल्कि उनके संपूर्ण विकास (Overall development) में भी मदद मिल रही है।
- एल्बेंडजोल टैबलेट के साथ-साथ साफ-सफाई, शौचालयों के प्रयोग, जूता या चप्पल पहनने और हाथ धोने के बारे में भी जानकारी दी जाती है ताकि दोबारा संक्रमण न हो।
- आंगनवाड़ी और स्कूल आधारित एक बड़े समूह के लिये कृमि निवारण कार्यक्रम सुरक्षित और लागत प्रभावी है, साथ ही इसके द्वारा आसानी से करोड़ों बच्चों तक पहुँचा जा सकता है।
- कृमि निवारण के लिये एल्बेंडजोल की स्वीकार्यता पूरे विश्व में है और इस टैबलेट का कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इसके अतिरिक्त, किसी वजह से कोई बच्चा डोज लेना भूल जाता है तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय मॉप अप सेशंस आयोजित करता है ताकि कोई बच्चा छूट न जाए।
- कृमि निवारण के साथ-साथ बच्चों में साफ-सफाई के अभ्यास पर विशेष जोर दिया गया है ताकि उन्हें कृमि समस्या का सामना न करना पड़े। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय इस दिशा में खुले में शौच से मुक्ति के लिये विशेष उपायों पर जोर दे रहा है ताकि इस तरह के वातावरण का निर्माण हो सके जिससे किसी भी समुदाय को ऐसी दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
- स्वच्छ भारत के निर्माण में स्वच्छ भारत अभियान के ज़रिये जो कदम उठाए गए हैं उनसे राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस के उद्देश्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।
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