आर्थराइटिस जोड़ों के दर्द की एक आम समस्या है, जिसमें जोड़ घिस जाते हैं। जोड़ों में घिसाव कई तरह से और कई कारणों से हो सकते हैं। उम्र के साथ-साथ जोड़ों का घिसना एक आम बात है और यही एक कारण है कि अधिक उम्र के बुजुर्गो में खास तौर पर 55 से 60 वर्ष के लोगों में यह समस्या बहुत अधिक है। मोटापा, व्यायाम न करना ,और काम-काज तथा रहन-सहन की आधुनिक शैलियों के वजह से आजकल कम उम्र के लोग भी आर्थराइटिस का शिकार हो रहे हैं। वैसे तो, आर्थराइटिस जोड़ों की बीमारी है, लेकिन यह हृदय, फेफड़े, किडनी तथा रक्त नलिकाओं पर भी बहुत बुरा प्रभाव डालती है।
आर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ इंडिया की लखनऊ शाखा के आंकड़ों के मुताबिक यह बीमारी 30 साल के युवाओं को भी हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे लोगों को तुरंत ही डॉक्टर से संपर्क करके इलाज़ करा लेना चाहिए। जिससे उनको परेशानियों का सामना न करना पडे।
आर्थराइटिस के मरीजों में 20 फीसदी लोग 30 साल तक की उम्र के होते हैं। ऐसे मरीजों को कमजोर होने वाली हड्डियों का ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
अर्थराइटिस के प्रकार
आर्थराइटिस के अनेक प्रकार होते हैं, इनमें से सबसे आम है ,आस्टियोआर्थराइटिस और रयूमेटायड आर्थराइटिस।
1. आस्टियोआर्थराइटिस
यह सबसे आम प्रकार का आर्थराइटिस है। यह उम्र के साथ होता है और उंगलियां, कूल्हों और घुटनों पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है। कभी-कभी आस्टियोआर्थराइटिस, जोड़ों में चोट लगने कि वजह से भी हो जाता है, जैसे- फुटबाल खेलते वक्त घुटने में चोट लग जाए या कोई कार दुर्घटना में गिर जाए। तो बहुत समय लग जाते है, घुटनो के सुधार होने में और जिससे की उसके घुटनों में आर्थराइटिस हो सकता है।
2. रयूमेटाइड आर्थराइटिस
यह तब होता है, जब हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र ढंग से काम नहीं करता है, यह जोड़ और हड्डियों को प्रभावित करता है और आंतरिक अंग तथा तन्त्रों को भी प्रभावित कर सकता है। इसमें आपको थकान तथा बुखार भी हो सकता है।
गाउट
गाउट एक अन्य तरह की आर्थराइटिस है। जो कि जोडो़ में फैट के जमा होने से होती है। यह पैर की सबसे बड़ी उंगली को प्रभावित करती है , लेकिन इससे कई दूसरे जोड़ भी प्रभावित हो सकते है। जिससे की शरीर में यूरिक एसिड बढ़ जाता है, और जोड़ों के कॉर्टिलेज को नुकसान पहुँचता है। यूरिक एसिड मांसपेशियों एवं नसों में जमा होकर जोड़ों को जाम कर देते हैं। बाद में यह समस्या आर्थराइटिस का रूप धारण कर लेती है। कच्ची हड्डियों के खराब हो जाने, उनमें संक्रमण हो जाने अथवा मवाद बन जाने अथवा दुर्घटनाओं में चोट लग जाने के कारण भी आर्थराइटिस हो सकती है।
आर्थराइटिस कई और बीमारियों में भी देखने को मिल सकता है। जैसे ल्यूपस जिसमें कि शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र जोड़, हृदय, त्वचा, गुर्दे तथा अन्य अंगों को नुकसान पहुंचता है। एक संक्रमण जो कि जोड़ों में घुस कर हड्डियों के बीच के भाग को नष्ट कर देता है।
अर्थराइटिस (गठिया) के लक्षण
जब व्यक्ति को गठिया रोग हो जाता है तो, ये लक्षण सामने आते हैं, जैसे-
1. रोगी के जोड़ों में लचीलेपन में कमी होती है।
2. रोगी का वजन घटता जाता है।
3. शरीर में बहुत ज्यादा थकान रहती है।
4. चलने पर संधि शोथ वाले जोड़ों की आवाज आना इसका एक प्रमुख लक्षण है।
5. चलने फिरने में जोड़ों में दर्द होना, एक जगह काफी देर बैठने के बाद उठने में जोड़ों में बहुत दर्द होता है।
6. जब रोगी के शरीर के जोड़ों को कोई टच करता है तो, रोगी को बहुत पीड़ा होती है।
7. प्रभावित जोड़ के ऊपर त्वचा में गर्माहट और लालिमा का होना।
8. कभी-कभी जोड़ो पर सूजन, जकड़न और दर्द होता है, ये तब होता है जब, जोड़ों में यूरिक एसिड जमा हो जाता है, इत्यादि।
आर्थराइटिस के बड़े कारण
वैसे तो गठिया रोग जोड़ों में यूरिक एसिड अधिक मात्रा में जमा होने के कारण होता है, लेकिन कुछ कारण ऐसे भी होते हैं, जिनकी वजह से जोड़ों में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है, वो कारण कुछ इस प्रकार हैं-
1. बैक्टीरियल अथवा वायरल से फैलने वाले रोग के कारण आर्थराइटिस रोग हो जाता है।
2. अनुवांशिक के कारण भी आर्थराइटिस हो जाता है।
3. शरीर में अत्यधिक मोटापा और वजन के कारण भी आर्थराइटिस हो जाता है।
4. स्त्रियों में रजोनिवर्त्ति के बाद आर्थराइटिस होने का खतरा अधिक रहता है।
5. ज्यादा शराब पीना, हाई ब्लड प्रेशर और पोषण की कमी के कारण भी आर्थराइटिस रोग हो जाता है।
6. वसायुक्त भोजन अधिक मात्रा में खाने से भी गठिया रोग हो सकता है।
7. उच्च रक्त-चाप, मधुमेह, रक्त में बढे कोलेस्ट्रोल की मात्रा के कारण आर्थराइटिस रोग हो जाता है।
8. अधिक पेसाब आना भी आर्थराइटिस का ही एक कारण है।
9. गठिया रोग में हाथ-पांवों में छोटी-छोटी गांठें बन जाती है।
10. औरतों में एस्ट्रोजन की कमी और थाइराइड का विकार भी इसका एक बड़ा कारण है।
11. स्किन या ब्लड डिजीज जैसे लुकेमिया के कारण भी यह बीमारी होती है।
12. टाइफायड या पैराटाइफायड के बाद भी जोड़ों में दर्द की शिकायत रहती है, जो लगातार बनी रहे तो आर्थराइटिस बन जाती है।
आर्थराइटिस (गठिया) से बचने के उपाय
1. सबसे पहले आपको अपने वजन पर नियंत्रण रखना होगा।
2. कपालभाती, अनुलोम विलोम प्राणायाम जरूर करें।
3. सप्ताह में कम से कम 3 बार मांसपेशियों का व्यायाम करना जरूरी है।
4. संतुलित आहार लें, चोकर युक्त आटे की रोटी और छिलके वाली मूंग की दाल खाएं।
5. दूध और पनीर का सेवन न करें।
6. जितना हो सके पानी अधिक मात्रा में लें।
आर्थराइटिस (गठिया) के घरेलू उपचार
हीटिंग पैड और आईस पैक
जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द को ठीक करने के लिए हीटिंग पैड और आईस पैक आदर्श उपचार होते हैं। ये गठिया के मरीजों को हमेशा जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द से बचाते हैं। हीटिंग पैड और आईस पैक मरीजों को दर्द में आराम और राहत दिलाने में मदद करते हैं।
फिजियोथेरेपी
गठिया के कुछ मामलों में फिजियोथेरेपी बहुत ही ज्यादा सहायक है। यह दर्द को कम करता है और रोगियों को राहत देता है।
सर्जरी
अत्यधिक परिस्थितियों में गठिया के रोगियों को डॉक्टरों द्वारा सर्जरी की सलाह दी जाती है। सर्जरी का उपयोग मरीज के दर्द, शरीर को सही आकार देने और जोड़ों की गति में सुधार करने के लिए किया जाता है।
व्यायाम
व्यायाम शरीर में रक्त प्रवाह और गतिशीलता में सुधार करता है और जोड़ों के आस-पास की मांसपेशियों को बढ़ाता है। नियमित रूप से व्यायाम करना जोड़ों को मजबूत और लचीला बनाए रखने का काम करता है।
सुईमिंग और वाटर एरोबिक्स
ये दोनों गतिविधियां जोड़ों के दर्द पर दबाव कम करने में मदद करती हैं।
प्राकृतिक उपचार
एक स्वस्थ और संतुलित आहार का उपयोग करके गठिया का स्वाभाविक रूप से इलाज किया जा सकता है। मछली, मेवे, फल और सब्जियां, सेम, जैतून का तेल और सभी अनाज अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
योग
व्यायाम की तरह, योग भी जोड़ों के लचीलापन में वृद्धि करने में मदद करता है और गठिया के रोगियों में गतिशीलता को बढ़ाता है।
मालिश
हल्के हाथ से जोड़ों की मांसपेशियों को मालिश करने से रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है और प्रभावित जोड़ों को आराम मिलता है।
एक्यूपंक्चर
एक्यूपंक्चर एक चिकित्सा है, जिसमें त्वचा के प्रभावित बिंदुओं पर शुद्ध सुइयों को गठिया के किसी भी प्रकार के दर्द को ठीक करने के लिए चुभोया जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे लोगों को तुरंत ही डॉक्टर से संपर्क करके इलाज़ करा लेना चाहिए। जिससे उनको परेशानियों का सामना न करना पडे। ऐसे मरीजों को कमजोर होने वाली हड्डियों का ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
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