नवजात शिशुओं में पीलिया एक आम समस्या है। नवजात शिशुओं में व्यस्कों की तुलना में (RBC) यानी लाल रक्त कोशिकाओं का प्रवाह अधिक होता है। इसके परिणामस्वरूप शिशुओं में बिलीरुबिन का उत्पादन ज़्यादा होता है। दुर्भाग्यवश बिलीरुबिन का उत्पादन रक्तप्रवाह में होता है और नवजात शिशु का लीवर इतना परिपक्व नहीं होता कि इससे छुटकारा पा सके। जिसके कारण बिलीरुबिन का उच्च कनसनटरेशन रक्त में बढ़ने लगता है और इसी कारण नवजात शिशु को पीलिया (hyperbilirubinemia) होता है। इसे (physiological) या सामान्य पीलिया भी कहा जाता है।
नवजात शिशुओं में पाए जाने वाले पीलिया के प्रकार
1. प्रिमैचयोरिटी के कारण पीलिया
प्रिमैचयोर जन्म के कारण शिशु के अंगों का विकास, जिसमें लीवर भी शामिल हैं, धीरे होता है। वह उतने परिपक्व नहीं होते कि बिलीरुबिन का निष्कासन कर सकें।
2. स्तनपान के कारण पीलिया
जब शिशु को पर्याप्त मात्रा में स्तन का दूध नहीं मिलता है।
3. ब्लड ग्रुप में असंगति के कारण पीलिया
यदि माँ और शिशु का ब्लड ग्रुप एक समान ना हो तो ऐसी स्थिति में शिशु के (RBC) माँ के शरीर द्वारा उत्पादित एनटिबोडिज नष्ट हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप शिशु के रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाता है।
4. स्तन के दूध के कारण पीलिया
यह एक अलग प्रकार का पीलिया है। जो केवल स्तनपान करने वाले नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है।
(hyperbilirubinemia) नवजात शिशुओं में पीलिया का सबसे का सबसे आम कारण है।
नवजात शिशुओं में पीलिया के कारण
1. लीवर में खराबी।
2. बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण।
3. (Haemorrhage) नकसीर यानी आंतरिक रक्तस्राव।
4. कुछ असमानताओं की वजह से शिशु के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं में खराबी का बढ़ना।
5. (Sepsis) शिशु के रक्त में संक्रमण।
नवजात शिशुओं में पीलिया के बचाव
नवजात शिशुओं में पीलिया का पता, वैसे ही लगाया जा सकता है जैसे अन्य स्थितियों में लगाया जाता है। जैसे आँख और त्वचा में पीलापन। सबसे पहले छाती, पेट और पांव में पीलापन दिखने लगता है। यह आमतौर पर सेकेंड्स में विकसित होता है और शिशु के जन्म के चार दिन बाद पता लगाता है। अधिकतर मामलों में यह नर्म स्थिति में होते हैं और दो से तीन हफ्तों के बीच खुद ही दिखना बंद हो जाते हैं। हालांकि निम्न स्थितियों में चिकित्सीय सहायता लें।
1. अगर पीलिया तुरंत या जन्म के चौबीस घंटे के भीतर हो।
2. यदि शिशु को तेज़ बुखार हो। ( 100° सेल्सियस से ज्यादा)
3. अगर पीलिया तीन हफ्तों से ज्यादा बना रहे।
4. अगर बच्चा ज्यादा सोए और तेज़ रोता हो।
5. अगर शिशु ठीक से खाना नहीं खाता हो।
कई मामलों में यदि बिलीरुबिन का स्तर 25mg से ज्यादा है और अगर इसका उपचार नहीं किया गया है, तो स्थिति और खराब हो सकती है इसके कारण (Cerebral palsy), ब्रेन डैमेज और मृत्यु भी हो सकती है।
नवजात शिशुओ में पीलिया का निदान
1. ट्रांस्क्युटानेओस बिलिरुबिनमेटर (Transcutaneous bilirubinmeter) का इस्तेमाल करके त्वचा की जांच करना।
2. शिशु के ब्लड टेस्ट द्वारा जांच करना।
3. शारीरिक परिक्षण द्वारा।
नवजात शिशुओ में पीलिया का उपचार
1. शिशुओं में पीलिया का उपचार निम्न की सहायता से किया जा सकता है।
2. फोटोथेरेपी– इस थेरेपी में,एक विशेष प्रकार की नीली और हरी लाइट को उत्सर्जित किया जाता है, इसे शिशुओं पर डालने के लिए बनाया जाता है। यह लाइट बिलीरुबिन के अणुओं के आकार और संरचना को संशोधित करती है जिससे यह मल और मूत्र के द्वारा से निष्कासित हो जाती है।
3. यह उपचार गंभीर प्रकार के पीलिया के लिए किया जाता है। इसमें शिशु का थोड़ा रक्त लिया जाता है। माँ के रक्त में विद्यमान बिलीरुबिन और एंटीबोडिज को पतला करके, वापस शिशु के शरीर में डाला जाता है
4. इंट्रावीनस इम्युनोग्लोब्युलिन– यह उपचार उस स्थिति में उपयुक्त होता है जब इसका कारण माँ और शिशु के रक्त में पाए जाने वाली असंगति हो। (Immunoglobulin) शिशु के शरीर में इंजेक्शन द्वारा डाला जाता है और (intravenously) माँ के एंटिबडिज शिशु रक्त में इसके स्तर को कम करते हैं।
नवजात शिशु में पीलिया की रोकथाम – Newborn Jaundice Prevention in Hindi
- नवजात शिशु में पीलिया की रोकथाम का सबसे अच्छा उपाय, पर्याप्त एवं उचित आहार है। शिशुओं के जन्म के कुछ दिनों तक प्रतिदिन 8 से 12 बार स्तनपान कराना चाहिए।
- यदि किसी माँ को अपने बच्चे को स्तनपान कराने से सम्बंधित कोई प्रश्न या चिंता है, तो स्तनपान सलाहकार से बात करनी चाहिए।
- गर्भावस्था के दौरान, एक माँ अपना रक्त परीक्षण करा सकती हैं।
- बच्चे के जन्म के पहले पांच दिनों तक उसे अत्यंत निगरानी में रखें, तथा जॉन्डिस (Infant jaundice) से सम्बन्धी लक्षणों के पाए जाने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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