आज के समय में अस्थमा की बीमारी इतनी आम हो गयी है, की नवजात शिशु को अस्थमा जैसी बीमरियों का सामना करना पड़ रहा है।यह एक संक्रामक बीमारी है और यह बीमारी कई अन्य कारकों के कारण भी होती है। जब ब्रोन्कियल ट्यूब में सूजन हो जाती है, तब सांस लेने में परेशानी होती है। इसलिए आपको बच्चों में अस्थमा के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सांस लेने में कठिनाई होना, अस्थमा का सबसे मुख्य लक्षण है।
जब नवजात शिशु माँ के गर्भ में होता है, तो माँ को बहुत सावधान रहने की जरुरत होती है। गर्भवती महिला को अपने खान-पान का ख़ास ख्याल रखना चाहिए क्योंकि इसका असर उनके गर्भ में पल रहे छोटे बच्चो पर भी पड़ता है। अक्सर अपने माता-पिता से कुछ संक्रमणों के जीन्स शिशु को मिलते हैं। इसके कारण बच्चे को क्रोनिक और गंभीर डिसऑर्डर हो सकते हैं।
नवजात शिशु में अस्थमा के लक्षण
लक्षणों में शामिल है –
- बेचैनी।
- खाँसी का लगातार होना।
- अक्सर सर्दी-जुकाम या खांसी का होना।
- रात में और सुबह कफ की शिकायत होना।
- दिल की धड़कन का बढऩा।
- सही से सांस न ले पाना।
- सांस लेते वक़्त सिने में दर्द।
- थकान होना, जो खराब नींद की वजह से हो सकती है।
- एक्सरसाइज और खेलते वक़्त जल्दी थकान महसूस होना और साँस फूलना।
- सीने में जकडऩ और दर्द की समस्या होना।
- संक्रमण ब्रोंकाइटिस या किसी अन्य साँस समस्या के कारण नवजात शिशु को अस्थमा जैसी बीमारी हो सकती है।
- साँस छोड़ते समय ध्वनी का आना। आपको इस स्थिति को अनदेखा नहीं करना चाहिए और जल्द ही डॉक्टर से मिलना चाहिए।
अस्थमा के कारण
- श्वास संबंधी समस्या की वजह से नवजात शिशु को अस्थमा की समस्या हो सकती है।
- जन्मजात हृदय रोग भी बन सकता है अस्थमा का कारण।
- शिशु का जन्म समय से पहले (प्रीमैच्योर) होना भी अस्थमा होने का कारण हो सकता है।
- शिशु का जन्म के समय वजन का कम होना।
- अस्थमा का सबसे गहरा संबंध एलर्जी के साथ है। कुछ बच्चे पर्दे, गलीचे, कार्पेट, धुएं, रूई के बारीक रेशे, ऊनी कपड़े, फूलों के पराग, जानवरों के बाल, फफूंद और कॉकरोच जैसे कीड़े के प्रति एलर्जिक होते हैं। जिस वजह से उन्हें साँस की समस्या हो जाती है।
- मोटापा भी बन सकता है अस्थमा होने का कारण। अधिक वजन फेफड़ों पर अधिक दबाव डालता है, जिससे अस्थमा की आशंका बढ़ जाती है।
- ज्यादातर प्रदूषण की वजह से अस्थमा की समस्या होती है, इसलिए नवजात शिशु को प्रदुषण वाली जगह से दूर ही रखे।
- तापमान में बदलाव से एलर्जी के मामले बढ़ते हैं। ज्यादा गर्म और नम वातावरण में अस्थमा के फैलने की सम्भावना अधिक होती है। ठंडी हवा से भी अस्थमा का दौरा पड़ सकता है।
- आमतौर पर अस्थमा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। जब माता-पिता दोनों को अस्थमा होता है, तो उनके बच्चों को भी अस्थमा होने की संभावना अधिक रहती है।
अस्थमा के रोकथाम
- अस्थमा ट्रिगर्स के लिए जोखिम सीमित करें, इस रोग को ट्रिगर्स करने वाले एलर्जी और परेशानियों से बचने में अपने बच्चे के साथ सक्रिय रहें।
- अपने बच्चे को सक्रिय करने के लिए प्रोत्साहित करें, जब तक आपका बच्चा इस रोग से अच्छी तरह से नियंत्रित नही होता है| तब तक नियमित शारीरिक गतिविधि फेफड़ो को सही से कार्य करने में परेशान कर सकता है।
- कोई भी समस्या होने पर चिकित्सक को तुरंत ही दिखाएं, जाँच के लक्षणों को अनदेखा न करे|
- यह रोग समय के साथ बदलता है, इसलिए अपने बच्चे को चिकित्सक से समय-समय पर जांच कराते रहे।
- अपने बच्चे का स्वस्थ वजन बनाएं रखें, अधिक वजन इस रोग के लक्षण को बिगाड़ सकता है|
अस्थमा के उपचार
- इनहेलर और नेबुलाइजर का प्रयोग कर इस समस्या को कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है।
- ज़रूरत के अनुसार सरसों के तेल में कपूर डालकर अच्छी तरह से गर्म करें। उसको एक कटोरी में डालें। फिर वह मिश्रण थोड़ा-सा ठंडा हो जाने के बाद सीने और पीठ में मालिश करें। दिन में कई बार इस तेल से मालिश करने पर अस्थमा के लक्षणों से कुछ हद तक आराम मिलता है।
- अस्थमा होने पर शिशुओं को कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि जिससे की वह सामान्य जिंदगी व्यतीत कर सकें। जिन चीजों से एलर्जी हो उनसे दूर रहें, जैसे कुछ बच्चो को पुरानी किताबों की गंध, परफ्यूम, अगरबत्ती, धूप, कॉकरोच, पालतू जानवरों आदि से एलर्जी होती है।
- अगर आपके बच्चे को मौसमी परेशानी हो तो उसे मौसम के शुरू होने से पहले डॉक्टर की सलाह से प्रिवैंटिव इनहेलर दे सकते हैं। हालांकि ये नवजात शिशुओं के लिए नहीं है। इसलिए कोई भी उपचार करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर ले।
- रात को देर से खाना खाकर सो जाने से अस्थमैटिक बच्चों के लिए नुकसान होता है। इसलिए बच्चों को सोने से कम से कम 2 घंटे पहले डिनर करवा दें। अगर नवजात शिशु में इस प्रकार की समस्या है तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
नवजात शिशु के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि मां को किसी भी तरह का कोई संक्रमण न हो। गर्भवती महिला का खानपान अच्छा होना चाहिए। इससे शिशु रोगमुक्त और सेहतमंद रहेगा और अगर नवजात शिशु को अस्थमा या सांस से संबंधित किसी भी तरह की समस्या हो रही हो तो डॉक्टर की सलाह ले।
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