दुनिया का सबसे ज्यादा खतरनाक और संक्रामक रोग है टीबी जाने इसके बचाव

ट्यूबरक्लॉसिस यानी TB आज भी विश्व का सबसे खतरनाक संक्रामक रोग (infectious disease) बना हुआ है, लेकिन वर्ष 2000 के बाद वैश्विक प्रयासों की वजह से टीबी से होने वाली लगभग 5.4 करोड़ मौतों को टालने में मदद मिली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ (Xinhua News Agency) की रिपोर्ट के मुताबिक, WHO ने 2018 की वैश्विक टीबी रिपोर्ट में कहा कि विभिन्न देश 2030 तक इसे समाप्त करने के लिए अब भी कुछ ज्यादा नहीं कर रहे हैं।

 

टीबी क्या है? (What is Tuberculosis in Hindi)

 

ट्यूबरकुलोसिस या टीबी(TB) एक संक्रामक रोग है जो रॉड के आकार के माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकोलुसिस नामक जीवाणु से होता है। प्रति वर्ष लाखों लोग इस ट्यूबरकुलोसिस (tuberculosis ) जैसी बीमारी की चपेट में आने से मर जाते हैं। टीबी के जीवाणु से संक्रमित होने के बाद भी कुछ व्यक्तियों के शरीर में इस बीमारी के सक्रिय होने के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, तो उसे इनएक्टिव या असक्रिय टीबी कहते हैं।

 

टीबी होने के कारण (Causes of tuberculosis in Hindi)

 

अगर कोई व्यक्ति टीबी से संक्रमित है तो उसके शरीर से टीबी के जीवाणु दूसरों के शरीर में भी फैल सकते हैं। कफ, छीकने और यहां तक कि यदि संक्रमित व्यक्ति बात करता है तो उसके मुंह से जीवाणु (bacterium) हवा में आ जाता है और जब लोग इस हवा में सांस लेते हैं तो वे भी संक्रमित हो जाते हैं। यह ज्यादातर तब होता है जब आप संक्रमित व्यक्ति के साथ रहते हैं या उसके आसपास रहते हैं और उसी हवा में सांस लेते हैं। सांस लेने से यह जीवाणु फेफड़ों (lungs)में पहुंच जाता है और फिर इम्यून सिस्टम को भी प्रभावित करता है।

 

जिन देशों में टीबी अधिक फैली हो वहां यात्रा करने पर दूसरे व्यक्ति को टीबी होने का खतरा रहता है। इसके अलावा जो लोग अस्पताल में एक्टिव टीबी के मरीजों की देखभाल करते हैं उनमें भी यह जीवाणु प्रवेश कर सकता है। और टीबी होने के कारण हो सकता है।

 

टीबी के लक्षण (Symptoms of Tuberculosis in Hindi)

 

टीबी का इनएक्टिव इंफेक्शन होने पर इस बीमारी का कोई भी लक्षण(symptom) जल्दी दिखायी नहीं पड़ता है। लेकिन जब इसके बैक्टीरिया एक्टिव हो जाते हैं तो ट्यूबरकुलोसिस के लक्षण बड़ी आसानी से दिखने लगते हैं।

 

अगर इन लक्षणों की बात करें तो इन्हें शरीर में विकसित होने में समय लगता है इसलिए जल्दी किसी को पता नहीं चल पाता है। लेकिन जब लक्षण अधिक बढ़ जाते हैं तब जाकर इस बीमारी (TB) का पता चल पाता है। इस बीमारी के बैक्टीरिया आमतौर पर गुर्दा, लसिका ग्रंथी, हड्डी और जोड़ों को प्रभावित करते हैं लेकिन टीबी का रोग फेफड़ों(lungs) को सबसे ज्यादा संक्रमित करता है।

 

  • कफ आना

 

  • कई दिनों तक लगातार खांसी का आना

 

  • वजन में लगातार गिरावट

 

  • थकान का अनुभव होना

 

  • बुखार आना

 

  • रात में पसीना आना

 

  • ठंड लगना

 

  • सीने में दर्द का होना

 

  • सांस लेने में तकलीफ होना

 

  • भूख की कमी ((lack of appetite)

 

टीबी का निदान (Tuberculosis Diagnosis in Hindi)

 

टीबी के जीवाणु के प्रतिक्रिया जानने के लिए इम्यून सिस्टम (Immune system) की जांच की जाती है। इसके लिए डॉक्टर आमतौर पर ट्यूबरकुलिन स्किन टेस्ट करते हैं। यह टेस्ट ऐसे व्यक्तियों का किया जाता है जिनमें किसी एक्टिव इंफेक्शन (active infection) के व्यक्ति के संपर्क में आने से टीबी हो गई हो या जिनमें टीवी के इंफेक्शन के एनएक्टिव होने की आशंका होती है।

 

स्किन टेस्ट के लिए व्यक्ति के बांह में इंजेक्शन लगाया जाता है। 2 या 3 दिन के बाद डॉक्टर इसका परीक्षण करता है। यदि यह टेस्ट पॉजिटिव होता है तो जहां इंजेक्शन लगाया गया होता है वह जगह कठोर और सूज (swellen) जाती है। इसका मतलब यह होता है कि आपका शरीर टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित है। लेकिन यदि सूजन नहीं दिखती है तो इसका मतलब यह है कि टीबी एक्टिव एवं असक्रिय है।

 

टीबी की जांच के लिए सीने का भी एक्स-रे किया जाता है और प्रयोगशाला में थूंक के नमूनों की जांच की जाती है। इससे यह पता चल जाता है कि एक्टिव टीबी (active TB) है या नहीं। इसके अलावा डॉक्टर शरीर के अन्य हिस्सों की जांच कराने की भी सलाह देते हैं।

 

टीबी का इलाज (Tuberculosis Treatment  in Hindi)

 

बैक्टीरिया का संक्रमण होने पर टीबी का इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स दिया जाता है। इसके अलावा पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल में भी भर्ती कर लिया जाता है और जब टेस्ट में वह संक्रमित नहीं पाया जाता है तो उसे टीबी रोगियों से बहुत दूर रहने की सलाह दी जाती है।

 

फेफड़े में इंफेक्शन होने पर पीड़ित को 3 या 4 एंटीबायोटिक्स एक साथ दो महीनों तक दी जाती है। इसके बाद चार से सात महीनों तक इनमें से सिर्फ दो एंटीबायोटिक दी जाती है। लेकिन पहले यह भी देखा जाता है कि वह एंटीबायोटिक किस तरह का है और टीबी के जीवाणु को मारने के लिए कितना प्रभावी है। कुछ मरीजों को 12 महीने तक एंटीबायोटिक लेने की जरूरत पड़ती है। इन एंटीबायोटिक में आइसोनिएजिड (isoniazid), रिफैम्पिन (rifampin).पिराजिनामाइड(pyrazinamide) और एथमबुटॉल(ethambutol) शामिल है। इन दवाओं को डॉक्टर के बताए अनुसार ही लेना चाहिए।TB टीबी का इलाज की दवाओं का कोर्स खत्म होने पर शरीर से यदि टीबी के लक्षण दूर हो जाते हैं तो डॉक्टर दोबारा से लार या थूक का परीक्षण करते हैं कि बैक्टीरिया खत्म हो गया या नहीं। यदि आपको हड्डियों और जोड़ों में टीबी है तो इसके इलाज में एक साल से अधिक का समय लगता है। यदि आप आइसोनिएजिड (isoniazid) ले रहे होते हैं तो डॉक्टर 50 mg पिराडॉक्सिन (pyridoxine ,vitamin B6) लेने की सलाह देते हैं क्योंकि यह साइड इफेक्ट से बचाता है।

 

टीबी से बचाव (Tuberculosis Prevention in Hindi)

 

  • शरीर में टीबी फैलने से पहले ही जल्द से जल्द इसका इलाज कराकर टीबी जैसी खतरनाक बीमारी से बचा जा सकता है।

 

  • टीबी के इंफेक्शन से बचने के लिए वैक्सीन भी मौजूद है। यह कुछ हद तक टीबी होने के जोखिम को कम करती है।

 

  • टीबी के लक्षण दिखने पर तुरंद स्किन टेस्ट कराना चाहिए ताकि यह पुष्टि हो सके कि टीबी एक्टिव है या इनएक्टिव।

 

  • डॉक्टर के बताए अनुसार ही इस बीमारी की दवाएं लें, इससे आप कई तरह के साइड इफेक्ट से बच जाएंगे।

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