मच्छर डेंगू (Dengue) , चिकनगुनिया (Chikungunya) और मलेरिया (Malaria) ही नहीं, लिम्फेटिक फाइलेरिया (Lymphatic filariasia) (हाथीपांव) भी फैलाता है। मच्छर (Mosquito) के काटने पर मनुष्य के रक्त में पतले धागे जैसे कीटाणु (Insect) फैलने लगते हैं और परजीवी (Parasite) की तरह वर्षो तक पलते रहते हैं। देश के 256 जिलों के 99 फीसदी गांवों में इसका जाँच हो चुकी है, लेकिन देश को फाइलेरिया मुक्त होने में अभी समय लगेगा। वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में उस साल इस बीमारी के 87 लाख मामले दर्ज किए गए थे और 2.94 करोड़ लोग फाइलेरिया से होने वाली विकलांगता (Disability) से पीड़ित थे।
मच्छर के लार (Saliva) से निकलकर मनुष्य के रक्त में परजीवी की तरह पलने वाले फाइलेरिया के वयस्क कीटाणु केवल मानव लिम्फ प्रणाली (Lymph system) में रहते हैं और इसे नुकसान पहुंचाते रहते हैं। लिम्फ प्रणाली शरीर के तरल संतुलन को बनाए रखती है और संक्रमण (Infection) का मुकाबला करती है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा लिम्फेटिक फाइलेरिया (एलएफ) के उन्मूलन (Abolition) के लिए एक त्वरित योजना (Quick plan) शुरू की जा रही है। वर्ष 2020 के वैश्विक (Global) एलएफ उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को तेजी से काम करने की जरूरत है।
हार्ट केयर फाउंडेशन (Heart Care Foundation) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, फाइलेरिया, जिसे बोलचाल की भाषा में हाथीपांव भी कहा जाता है, अंगों, आमतौर पर पैर, घुटने से नीचे की भारी सूजन (Heavy inflammation) या हाइड्रोसेल (Hydrocele) (स्क्रोटम की सूजन) के कारण बदसूरती और विकलांगता का कारण बन सकता है। भारत में 99.4 प्रतिशत मामलों में वुकेरिए बैंक्रोफ्टी प्रजाति (Wukeriye Bribroty Species) का कारण हैं। उन्होंने कहा, यह कीड़े लगभग 50,000 माइक्रो फ्लेरी (Micro larvae) उत्पन्न करते हैं, जो किसी व्यक्ति के रक्त प्रवाह (blood flow) में प्रवेश कर जाते हैं, और जब मच्छर संक्रमित (Infected) व्यक्ति को काटता है तो उसमें प्रवेश कर जाते हैं। जिनके रक्त में माइक्रो फ्लेरी होते हैं वे ऊपर से स्वस्थ दिखायी दे सकते हैं, लेकिन वे संक्रमक हो सकते हैं।
वयस्क कीड़े में विकसित लार्वा मनुष्यों में लगभग पांच से आठ साल और अधिक समय तक जीवित रह सकता है। हालांकि वर्षों तक इस कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, लेकिन यह लिम्फैटिक प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) द्वारा इसकी रोकथाम के लिए फाइलेरिया फ्री इंडिया कार्यक्रम (Filariasia free india program) के हिस्से के रूप में 2004 से बड़े पैमाने पर दवा वितरण अभियान चलाए जा रहे हैं। इसके तहत, स्थानिक जिलों में लगभग 65 प्रतिशत आबादी में दो दवाएं दी जाती हैं- पांच साल तक साल में एक बार डाइएथिल कारबामेजिन साइट्रेट (Diethyl carva host citrate) और अल्बेंडाजोल (Albendazole) की गोलियां।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, कई चुनौतियां हैं, जिनके कारण भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर (International level) पर अनिवार्य रूप से एलएफ को खत्म करने के लक्ष्य के करीब पहुंचने में सक्षम नहीं हो पाया है। सभी हितधारकों के बीच अधिक समन्वय (Co-ordination) की जरूरत है। साथ ही, आवश्यक परिवर्तन लागू करना और लक्ष्य प्राप्ति के लिए टेक्नोलॉजी (Technology) का भी सहारा लेना। डॉ. अग्रवाल ने इसकी रोकथाम के लिए सुझाव देते हुए कहा, मच्छर के काटने से बचाव रक्षा का सबसे अच्छा तरीका है, जब वाहक अधिक सक्रिय होते हैं, तब सुबह-शाम बाहर जाने से बचें। एक कीटनाशक छिड़की हुई मच्छरदानी (Mosquito net) के अंदर सोएं, लंबी आस्तीन वाली शर्ट और पतलून पहनें और खुद को कवर करके रखें, तीव्र खुशबू वाला सेंट न लगायें, वह मच्छरों को आकर्षित कर सकता है।
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