जाने स्पाइनल इन्फेक्शन के लक्षण और इससे बचने के उपाय

स्पाइनल इन्फेक्शन एक तरह का रेयर इन्फेक्शन है. अगर आपके भी रीढ़ की हड्डी में लगातार दर्द होता है तो , इसे हल्के में न ले, हो सकता है ये स्पाइनल इन्फेक्शन। इसकी लापरवाही की वजह से करानी पड़ सकती है आपको सर्जरी।

 

आमतौर पर यह इन्फेक्शन बैक्टीरिया की वजह से होती है. रक्त्वाहिनियों के जरिये ये बैक्टीरिया रीढ़ की हड्डी तक फैल जाता है. जो रीढ़ की हड्डियों के बीच मौजूद डिस्क स्पेस, कशेरुकाओं और स्पाइनल कैनाल या उस के आसपास के सौफ्ट टिशूज को प्रभावित करता है। जिस से डिस्क और उस के आसपास के हिस्सों में इंफेक्शन होने लगता है और डिसाइटिस होने का खतरा हो जाता है

 

स्पाइनल इंफेक्शन के लक्षण

 

  • बुखार होना,

 

  • नाइट पेन,

 

 

  • कंपकंपी आना,

 

  • मरीज को पीठ में बहुत तेज दर्द,

 

  • गरदन या पीठ के किसी हिस्से में टिंडरनैस,

 

इसके लक्षण बहुत कम नजर आते है जिस के कारण काफी देर से इस का पता चलता है। वयस्कों में स्पाइनल इंफेक्शन बहुत धीमी गति से फैलता है। कुछ मरीजों को तो डायग्नोज किए जाने के कुछ हफ्ते या महीने पहले ही इस के लक्षणों का एहसास होना शुरू हो जाता है।

 

इसके लक्षण आमतौर पर गर्दन या पीठ के किसी हिस्से में टिंडरनैस आने के साथ शुरू होते हैं और दवा लेने और आराम करने के बावजूद दर्द कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता ही चला जाता है।

 

इंफेक्शन बढ़ने पर बुखार होना, कंपकंपी आना, नाइट पेन या वजन घटना आदि लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं।

 

हालांकि ये वे सामान्य लक्षण नहीं हैं, जो हर मरीज में दिखाई देते हों। शुरुआत में मरीज को पीठ में बहुत तेज दर्द होने लगता है, जिस के कारण शरीर का मूवमैंट भी नहीं हो पाता है।

 

स्पाइनल इन्फेक्शन से होने वाली समस्याएं 

 

  • डिसाइटिस भी एक तरह का इंफेक्शन ही है, जो रीढ़ की हड्डी की अंदरूनी डिस्क में होता है, जैसे-जैसे यह इंफेक्शन फैलने लगता है, डिस्क के बीच की स्पेस कम होने लगती है और इसके टूटने की वजह से इंफेक्शन डिस्क स्पेस के ऊपर और नीचे की तरफ शरीर के अन्य अंदरूनी हिस्सों में भी फैलने लगता है, और जिस वजह से औस्टियोमाईलाइटिस हो जाता है। यह भी एक तरह का हड्डियों का ही इंफेक्शन है, जो बैक्टीरिया या फंगल और्गेनिज्म की वजह से होता है।

 

  • इंफेक्शन की वजह से हड्डी कमजोर होने लगती है और जिस वजह से इसके टूटने या आकार बिगड़ने का खतरा भी रहता है।

 

  • स्पाइनल इन्फेक्शन से बेहोशी आना , शरीर में कमजोरी महसूस होना , झनझनाहट होना , तेज दर्द होना और ब्लैडर डिस्फंक्शन जैसे न्यूरोलौजिकल लक्षण भी नजर आने लगते हैं।

 

  • ज्यादातर स्पाइन इंफेक्शन लंबर स्पाइन यानी रीढ़ की हड्डी के मध्य या निचले हिस्से में होते हैं, क्योंकि इसी हिस्से से रीढ़ की हड्डी में ब्लड सप्लाई होता है। नसों के जरीए लिए जाने वाले नशे से संबंधित इन्फैक्शन में ज्यादातर गर्दन या सर्वाइकल स्पाइन प्रभावित होती है।

 

स्पाइनल इंफेक्शन के इलाज़

 

  • स्पाइनल इंफेक्शन के इलाज़ में, लैबोरेटरी इवैल्यूएशन और रेडियोग्राफिक इमेजिंग स्टडीज कराना बेहद जरूरी हो जाता है।

 

  • ज्यादातर स्पाइनल इन्फेक्शन के ट्रीटमेंट में नसों के जरिये दिए जाने वाले एंटीबायोटिक्स का कॉम्बिनेशन शामिल होता है।

 

  • इसके अलावा ब्रेसिंग कराने और रेस्ट करने की सलाह भी दी जाती है।

 

  • इन्फेक्शन की वजह से वर्टिब्रल डिस्क में ब्लड सप्लाई सही तरीके से नहीं हो पाती है, इसलिए बैक्टीरिया की मौजूदगी की वजह से शरीर के इम्यून सेल्स और एंटीबायोटिक दवाइयां भी इन्फेक्शन से प्रभावित हिस्से तक आसानी से नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में 6 से 8 हफ्तों तक आईवी एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है।

 

  • इसके अलावा इन्फेक्शन में कमी आने पर रीढ़ की हड्डी की स्टेबिलिटी को सुधारने के लिए ब्रेसिंग कराने की सलाह भी दी जाती है। अगर एंटीबायोटिक्स और ब्रेसिंग से भी इन्फेक्शन कंट्रोल नहीं होता है या नसें सिकुड़ने लगती हैं, तब सर्जिकल ट्रीटमेंट जरूरी हो जाता है।

 

  • रीढ़ की हड्डी में आ रही विकृति को बढ़ने से रोकने और नसों पर पड़ रहे किसी भी दबाव को कम करने के लिए सर्जरी की जाती है।

 

 

अगर आपको भी स्पाइनल इन्फेक्शन होने के सारे लक्षण नजर आ रहे है तो, डॉक्टर्स से संपर्क करे और उनसे इस बारे में बात करके सलाह जरूर ले। क्योंकि लापरवाही करने से आपको बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। और सर्जरी भी करानी पड़ सकती है। इसलिए समय रहते डॉक्टर से जांच करा ले।

 

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