काला अजार एक खतरनाक संक्रमण हैं, जो एक परजीवी के कारण होता है। कीट (Insects) के काटने से यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे में फैल जाती हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों की माने तो भारत में काला अजार की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं, भारत समेत हमारे पडोसी देश जैसे – बांग्लादेश और नेपाल में भी पाया जाता हैं, यह बीमारी ऐसे पर ज्यादा आक्रमण करती है जो गरीब होते हैं और ज्यादातर ग्रामीण छेत्र में रहने वाले होते हैं.
काला अजार के लक्षण-
- इसके विशिष्ट नैदानिक लक्षण लंबे समय तक रहते हैं और बुखार आता जाता रहता हैं, लेकिन ऐसा बिलकुल भी जरुरी नहीं हैं की किसी प्रकार की कठोरता और ठण्ड लगने जैसे लक्षण दिखे.
- इसके अन्य लक्षणों में एस्प्लेनोमेगले, लीम्फाडिनोपेथी, हेपाटोमेगले और प्रगतिशील एनीमिया हैं।
- इसके वजह से कुछ बीमार इंसानो का वजन कम हो जाता हैं,तथा हाइपरगामाग्लोब्युलिनेमिया के साथ हाइपोअल्ब्युनेमिया हो सकता है।
- इस बीमारी में खाने, पिने या वजन घटने की कमजोरी आती हैं,
- सूखी त्वचा, पतला होना, बालों का गिरना।
- इस बीमारी में पैर, पेट,और हाथो की त्वचा का रंग हल्का पड़ने लगता हैं, इसलिए इसे काला अजार यानी “ब्लैक बुखार” कहते है।
- इस बीमारी में रक्ताल्पता की भी समस्या आती है।
- कुछ इंसानो को दूसरी बीमारियों क साथ काला अजार भी हो जाता हैं, ऐसी स्थिति में काला अजार को पहचानना और भी कठिन हो जाता हैं.
- बच्चो को काला अजार काफी तरह से प्रभावित करता हैं, क्योंकि उनमें संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम होती है
- अगर सही समय पर इसका इलाज नहीं किया गया तो इस बीमारी में पीड़ित की जान भी जा सकती हैं, काला अजार लोगो को अक्सर मलेरिया, टाइफाइड, जैसी बीमारियों को समाज बैठने की भूल करता हैं, क्योंकी इन बीमारियों के लक्षण और बाकि बीमारियों क लक्षण एक जैसे होते हैं|
काला अजार की वजह-
- काला अजार या आंत लीशमनियासिस एक घातक संक्रमण होता है जो परजीवी प्रोटोजोआ लीशमनिया डोनोवनी की वजह से होता हैं, यह एक संक्रमित व्यक्ति से, संक्रमित स्त्री जाति की सेंड मक्खी के काटने से, दूसरे व्यक्ति में फैल जाता हैं, जिसका नाम फ्लेबोटोमस अर्जेन्तिप्स है। सेंड मक्खी परजीवी जब किसी संक्रमित व्यक्ति के रक्त पर बैठती है तो वह भी संक्रमित हो जाती है और जब वह किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तो उस व्यक्ति को भी ये बीमारी लग जाती है।
- एल डोनोवनी के भारत में कारण आंत का (वीएल) लीशमनियासिस या भारत और पूर्वी अफ्रीका में काला अजार के लक्षण पाए जाते हैं|
- एल तरोपिका , क्युतेनिअस लीशमनियासिस (सीएल) की वजह बनता है।
काला अजार से बचाव-
- पेर्मेथ्रिन जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल करके वेक्टर पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं, ऐसे उपायों से उसे रोका जा सकता हैं, पेर्मेथ्रिन यक्त कपडे अथवा मच्छरदानी या पर्दे या कीटनाशक पेट से इस रोग के संचरण को रोकने की समता मिलती हैं, काला अजार की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय स्तर इन उपकरणों के उपयोग और उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- प्रारंभिक और शीघ्र निदान इस को भड़ने या फैलने से रोका जा सकता हैं, जिससे रुग्णता और मृत्यु दर कम हो सकती है। इसके अलावा परजीवी के द्वारा इस रोग के फैलने और बढ़ने का खतरा और भी कम हो जायेगा।
- जिन जगह पर काला अजार फैला हुआ हो या उसके फैलने की असंका हो उन भागो में काफी जागरूकता फैलाने की जरूरत हैं, साथ ही उन छेत्रो में करने वाले किसी भी इंसान को पूरी तरह से जागरूक रहना होगा और उन्हें इस रोग के इलाज के बारे में नए नए उपाय बताने होंगे.
देश के किस हिस्से में सबसे ज्यादा समस्या हैं-
- पुरे विश्व में लगभग ८८ देशो के रहने वाले लोगो में ३५० मिलियन लोगो को काला अजार होने की आशंका हैं, और ५००० लोग जान लेवा बीमारी से पीड़ित हैं, यह रोग दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में बहुत आम है और लगभग 200 मिलियन लोगों के इसकी चपेट में आने का खतरा है। भारत में १६५ मिलियन लोगो को काला अजार होने क चान्सेस हैं|
- काला अजार के बहुत से मामले प्रकाश में आते हैं, जिससे मतलब २०० इंसान की मिर्त्यु हो जाती हैं, लेकिन यह तो सिर्फ उन जगहों की बात हो रही हैं जो प्रकाश में आते हैं, बहुत से ऐसे मामले हैं जो कभी सामने नहीं आते ।भारत में सबसे ज्यादा मामले काला अजार के बिहार में होते हैं, भारत के दूसरे राज्य जहां यह आम बात है वे हैं पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश।
- एचआईवी/एड्स (HIV Aids) के मरीजों को कालाजार होने का बहुत ज्यादा जोखिम रहता है। क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही कमजोर रहती हैं।
Disclaimer: GoMedii एक डिजिटल हेल्थ केयर प्लेटफार्म है जो हेल्थ केयर की सभी आवश्यकताओं और सुविधाओं को आपस में जोड़ता है। GoMedii अपने पाठकों के लिए स्वास्थ्य समाचार, हेल्थ टिप्स और हेल्थ से जुडी सभी जानकारी ब्लोग्स के माध्यम से पहुंचाता है जिसको हेल्थ एक्सपर्ट्स एवँ डॉक्टर्स से वेरिफाइड किया जाता है । GoMedii ब्लॉग में पब्लिश होने वाली सभी सूचनाओं और तथ्यों को पूरी तरह से डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा जांच और सत्यापन किया जाता है, इसी प्रकार जानकारी के स्रोत की पुष्टि भी होती है।