पॉलिसिस्टिक किडनी रोग क्या है, जाने किन चीजों का रखना चाहिए ख्याल।

पॉलिसिस्टिक किडनी रोग एक अनुवांशिक रोग है। अगर यह बिमारी माता-पिता में होती है तो, बच्चो में इस बिमारी के होने के 50 प्रतिशत संभावना होती है। इस रोग में मुख्य असर किडनी पर होता हैं।

 

दोनों किडनियों में बड़ी संख्या में सिस्ट जैसी रचना बन जाती हैं। क्रोनिक किडनी फेल्योर के मुख्य कारणों में से एक कारण पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज भी होता हैं। किडनी के अलावा मरीजों में सिस्ट लीवर, तिल्ली, आंतों और दिमाग की नली में भी दिखाई देती हैं।

 

 

पॉलिसिस्टिक किडनी रोग का फैलाव:

 

 

पी.के.डी महिलाओं, पुरूष और अलग-अलग जाती और देशों के लोगों में एक जैसा होता हैं। लगभग 1000 लोगों में से एक व्यक्ति में ये रोग दिखाई देता हैं।

 

किडनी रोग के मरीज जिन्हें डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण (Implantation) की आवश्यकता होती है, उनमे से 5 प्रतिशत रोगियों में पोलिसिस्टिक किडनी रोग (पी.के.डी) नामक बीमारी पाई जाती है।

 

 

पॉलिसिस्टिक किडनी रोग के लक्षण

 

 

  • पेट में गाँठ बनना ,

 

  • पीठ दर्द ,

 

  • बुखार ,

 

  • पेशाब में रक्त ,

 

 

 

  • लगातार पेशाब आना ,

 

  • सर में दर्द ,

 

  • एनोरेक्सिआ ,

 

 

  • खून के दबाव में वृद्धि होना ,

 

  • किडनी में पथरी होना ,

 

40 साल की उम्र में होनेवाले पी. के. डी. के मुख्य लक्षण पेट में गाँठ होना और पेशाब में खून आना है।

 

 

पॉलिसिस्टिक किडनी रोग किसको हो सकता है

 

 

पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज रोग ऑटोजोमल डोमिनेन्ट प्रकार का जेनेटिक रोग है, जो वयस्कों में होता है , और उनके बच्चो में इस बिमारी के होने के 50 प्रतिशत संभावना होती है।

 

 

पॉलिसिस्टिक किडनी रोग का किडनी पर क्या असर होता है

 

 

  • पॉलिसिस्टिक किडनी रोग में दोनों किडनियों में गुब्बारे या बुलबुले जैसे असंख्य सिस्ट पाए जाते हैं।

 

  • असंख्य सिस्ट में से छोटे सिस्ट का आकार इतना छोटा होता हैं कि, सिस्ट को नंगी आंखों से देखना संभव नहीं होता हैं और बड़े सिस्ट का आकार 10 सेंटीमीटर से भी अधिक हो सकता हैं।

 

  • इन छोटे बड़े सिस्टों का आकार बढ़ने लगता हैं, जिससे किडनी का आकार भी बढ़ता जाता है।

 

  • इस प्रकार बढ़ते हुए सिस्ट के कारण किडनी के कार्य करने वाले भागों पर दबाव आता हैं, जिसकी वजह से उच्च रक्तचाप हो जाता हैं।

 

  • इस बीमारी में कई सालों के बाद क्रोनिक किडनी फेल्योर हो जाता हैं और मरीज गंभीर किडनी की खराबी की ओर अग्रसर हो जाता हैं। अंत में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता हैं।

 

 

 

पी. के. डी का इलाज़ किस प्रकार होता है

 

 

 

1. किडनी की सोनोग्राफी

 

सोनोग्राफी की मदद से पी. के. डी. का निदान करा सकते है और यह आसानी से कम खर्च में हो जाता है।

 

 

2. सी. टी. स्कैन

 

पी. के. डी में यदि सिस्ट का आकार बहुत छोटा हो, तो सोनोग्राफी से यह पकड़ में नहीं आती है। तो इसलिए आप पी. के. डी. का निदान सी. टी. स्कैन द्वारा करा सकते है।

 

 

3. पारिवारिक इतिहास

 

यदि परिवार के किसी भी सदस्य में पी. के. डी. का निदान हो, तो परिवार के अन्य सदस्यों में पी. के. डी. होने की संभावना रहती है।

 

 

4. पेशाब और खून की जाँच

 

  • पेशाब की जाँच इसलिए कराई जाती है, जिससे पेशाब में संक्रमण और खून की मात्रा का पता चल सके।

 

  • खून की जाँच से खून में यूरिया, क्रीएटिनिन की मात्रा से किडनी की कार्यक्षमता के बारे में पता लगता है।

 

पी. के. डी. वंशानुगत रोग होने की वजह से रोगी के परिवार के सदस्यों की जाँच करवाना आवश्यक है।

 

 

5. जेनेटिक्स की जाँच

 

शरीर की संरचना जीन या गुणसूत्रों (Chromosomes) के द्वारा निर्धारित होती है। कुछ गुणसूत्रों की कमी की वजह से पी. के. डी. हो जाता है। भविष्य में इन गुणसूत्रों की उपस्थिति का निदान विशेष प्रकार की जाँचों से हो सकेगा, जिससे कम उम्र के व्यक्ति में भी पी. के. डी. रोग होने की संभावना है या नहीं यह पता लगा सकते है।

 

 

 

पॉलिसिस्टिक किडनी रोग मरीजों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए

 

 

 

  • पी. के. डी. के रोगियों को समय-समय पर जाँच और निगरानी की जरुरत होती है। भले ही उन्हें किसी भी प्रकार के इलाज की जरूरत हो न हो, उनको डॉक्टर से चेकअप कराते रहना चाहिए।

 

  • उच्च रक्तचाप को हमेशा नियंत्रित में रखना चाहिए।

 

  • मूत्रमार्ग में संक्रमण और पथरी की तकलीफ होते ही तुरंत डॉक्टर की सलाह ले।

 

  • बेहोशी या शरीर में ऐंठन हो , तो तुरंत ही उनको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और उनसे सलाह लेना चाहिए।

 

अगर पॉलिसिस्टिक किडनी रोग मरीजों को बुखार, अचानक पेट में दर्द या लाल रंग का पेशाब हो , सिरदर्द बार-बार हो , किडनी पर आकस्मिक चोट, छाती में दर्द , भूख न लगना , उल्टी होना , मांसपेशियों में गंभीर कमजोरी, नींद की समस्या , बेहोशी या शरीर में ऐंठन हो , तो उनको डॉक्टर से तुरंत संपर्क करके उनसे सलाह लेना चाहिए। और समय-समय पर इलाज़ कराते रहना चाहिए , जिससे उनको बाद में परेशानियों का सामना न करना पड़े।

 

 

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