वर्ल्ड आटिज्म अवेयरनेस डे 2019 – जाने इसके लक्षण, कारण और कैसे रखते है बच्चो का ख्याल

वर्ल्ड आटिज्म अवेयरनेस डे 2019, यह हर साल 2 अप्रैल को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस दिन मनाया जाता है, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को दुनिया भर में आटिज्म स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) से पीड़ित लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

 

 

आटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल विकार है, जो सामान्य मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है। इसके शुरुआती लक्षण 1-3 साल के बच्चों में नजर आ जाते हैं। इस बीमारी का इलाज 3 साल के उम्र तक करा लेना चाहिए, नहीं तो बाद में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

 

 

इस बीमारी से पीड़ित लोगों में एक जैसे लक्षण नहीं होते हैं, यही वजह है कि आटिज्म एक व्यापक स्पेक्ट्रम विकार है। इस वजह से, इस बीमारी को आमतौर पर आटिज्म स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) भी कहा जाता है। जिन लोगो को यह बीमारी होती है, उन्हें मिर्गी के दौरे भी पड़ सकते हैं।

 

 

आटिज्म जैसी बीमारी से ग्रसित बच्चे अपनी ही दुनिया में रहना चाहता है, वे दूसरों में कम रुचि रखते है , उन्हें सबके साथ रहना पसंद नहीं होता। ऐसे बच्चो में सामाजिक जागरूकता की भी कमी होती है। ऑटिस्टिक लोगों को अक्सर दुसरो से बात करने में समस्या होती है, जिस वजह से वे बात करते वक़्त अपने सामने वाले से आँखे नहीं मिला पाते हैं।

 

 

भारत में आटिज्म की समस्या

 

 

  • लगभग 10 लाख बच्चे भारत में आटिज्म से ग्रसित है।

 

  • 68 में से 1 बच्चा आटिज्म जैसी समस्याओं से पीड़ित होता है।

 

  • ये रोग 20 फीसदी आनुवांशिक कारण की वजह से होता है।

 

  • आटिज्म के लक्षण 12 से 13 माह के बच्चों में दिखने लगते हैं।

 

 

आटिज्म के लक्षण

 

 

  • बोलचाल में कमी आना,

 

  • लोगों से खुलकर बात ना कर पाना,

 

  • अकेले रहना अधिक पसंद करना,

 

  • एक ही शब्दों को बार-बार बोलना,

 

  • बात करते वक़्त अपने सामने वाले से आँखे न मिला पाना,

 

  • डर लगना,

 

 

आटिज्म के कारण

 

 

कुछ समय पहले तक, वैज्ञानिकों को यह पता नहीं था कि आटिज्म का कारण क्या है। लेकिन शोध के अनुसार वैज्ञानिकों ने पाया कि कई दुर्लभ जीन उत्परिवर्तन आटिज्म से जुड़े हो सकते हैं।

 

  • आनुवांशिक भी हो सकता है, आटिज्म होने का कारण।

 

 

 

  • गर्भावस्था के दौरान मां को कोई गंभीर बीमारी होना।

 

  • दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।

 

  • बच्चे का गर्भ में ठीक से विकास ना होना।

 

  • बच्चे के जन्म से पहले और बाद में टीके न लगवाने के कारण भी हो सकता है आटिज्म ।

 

  • कुछ वैज्ञानिकों का यह कहना है, की गर्भवती महिला को अगर थायराइड हार्मोन की कमी है, तो होने वाले बच्चो को भी हो सकता है आटिज्म की समस्या।

 

  • डिलीवरी के दौरान बच्चे को पूरी तरह से ऑक्सीजन न मिल पाना।

 

 

ऐसे रखे आटिज्म बच्चो का ख्याल

 

 

  • बच्चों को खेलने के लिए प्रोत्साहित करें।

 

  • खेल-खेल में उन्हें नए शब्द सिखाएं।

 

  • छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें।

 

  • खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका बताएं।

 

  • किसी भी तरह का तनाव न होने दे।

 

  • अकेले न रहने दे।

 

  • खान-पान का ख़ास ख्याल रखना।

 

  • कोई भी समस्या होने पर डॉक्टर से समय-समय पर जांच कराते रहे।

 

इस बीमारी से पीड़ित बच्चो में सामाजिक व्यवहार, लोगो से बात-चीत करने में समस्या, और दूसरों में कम रुचि रखना, आदि समस्या हो सकती है। ऑटिस्टिक जैसी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ प्रयासों की जरूरत है, इसके लिए आप डॉक्टर से सम्पर्क कर सकते है।

 

 

आटिज्म एक प्रकार की विकास संबंधी बीमारी है, जिसे पूरी तरह से तो ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन सही प्रशिक्षण और परामर्श की मदद से रोगी को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है। आटिज्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है। इसलिए इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए एक मनोचिकित्सक से तुंरत संपर्क करे।

 

 


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