ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर क्या है – जाने इसके लक्षण , कारण और बचने के उपाय

ऑटिज्म स्पेकट्रम डिसआर्डर , ज्यादातर यह बीमारी बच्चो को होती है। यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. इस बीमारी को ऑटिस्टिक स्पैक्ट्रम डिस्ऑर्डर भी कहा जाता है, क्योंकि हर एक बच्चो में इसके लक्षण अलग-अलग दीखते हैं। पर कुछ बच्चे ऐसे होते है , जो बहुत जीनियस होते हैं या उनका आईक्यू लेवल और दुसरो बच्चों की तरह होता है, पर उन्हें बोलने और सामाजिक व्यवहार में परेशानी होती है। और कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जिन्हें कुछ भी सीखने और समझने में परेशानी होती है और वे बार-बार एक ही तरह का व्यवहार करते हैं।

 

इस डिसआर्डर का जन्म के समय बच्चो में पता लगा पाना मुश्किल होता है। कुछ बच्चो में आईक्यू लेवल दूसरे बच्चो से अलग होता है। इस बीमारी के लक्षणों का एक साल की उम्र से पहले बच्चों में पता लगा पाना बहुत ही मुश्किल होता है। जब तक बच्चा दो से तीन साल तक का नहीं हो जाता , तब तक बच्चो में ऑटिज्म के लक्षणों को पहचान पाना मुश्किल होता है।

 

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर के लक्षण

 

  • असामान्य बर्ताव करना,

 

  • अधिक ध्यान केंद्रित हितों वाले,

 

  • कुछ विषयों में एक स्थायी और गहन रुचि रखते हैं,

 

  • दिनचर्या में थोड़े बदलाव से परेशान होना,

 

  • आंख से आंख नही मिला पाना,

 

  • बातचीत का असामान्य तरीका,

 

  • एक बच्चे में विकलांगता या बोलना देरी से सीखना,

 

  • सामाजिक व्यवहार में परेशानी,

 

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर के कारण

 

  • समय से पहले डिलीवरी होना।

 

  • डिलीवरी के वक़्त बच्चे को पूरी तरह से आक्सीजन न मिलना।

 

  • इस बीमारी का कारण पर्यावरण या जेनेटिक प्रभाव भी हो सकता है.

 

  • अगर माता-पिता या दोनों में से किसी एक को मधुमेह की समस्या हो तो ये कारण भी ऑटिज्म का बन सकता है,

 

  • शोधों के अनुसार , कुछ बच्चो में सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली कोई भी चीज ऑटिज्म का कारण बन सकती है।

 

  • प्रेग्नेंसी के दौरान अगर मां में थायरॉएड हॉरमोन की कमी है तो यह भी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर का कारण हो सकता हैं।

 

  • गर्भावस्था के दौरान किसी तरह की बीमारी या फिर पोषक तत्वों की कमी होना ऑटिज्म होने का प्रमुख कारण है।

 

ऑटिज़्म का निदान करने के लिए कौन से परीक्षणों का उपयोग किया जाता है?

 

एक एएसडी निदान में कई अलग-अलग स्क्रीनिंग, आनुवंशिक परीक्षण और मूल्यांकन शामिल होते हैं।

 

विकासात्मक स्क्रीनिंग

 

 

  • स्क्रीनिंग उन बच्चों की शुरुआती लक्षण पहचानने में मदद कर सकती है , जो एऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर जैसी बीमारी के लिए विकासात्मक स्क्रीनिंग कराते है। इस बीमारी का शुरुआती इलाज कराने से बच्चों को फायदा हो सकता है।

 

अन्य जांच और परीक्षण

 

आपके बच्चे का चिकित्सक ऑटिज्म के लिए परीक्षणों के संयोजन की सिफारिश कर सकता है, जिसमें शामिल हैं:

 

  • आनुवंशिक रोगों के लिए डीएनए परीक्षण,

 

  • व्यवहार मूल्यांकन,

 

  • दृश्य और श्रव्य परीक्षण, आत्मकेंद्रित से संबंधित दृष्टि और श्रवण के साथ किसी भी मुद्दे को नियंत्रित करने के लिए,

 

  • व्यावसायिक चिकित्सा स्क्रीनिंग,

 

  • आत्मकेंद्रित नैदानिक अवलोकन अनुसूची (ADOS) ,जैसे – विकासात्मक प्रश्नावली,

 

  • इसका इलाज़ आमतौर पर विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा किया जाता है। इस टीम में बाल मनोवैज्ञानिक, व्यावसायिक चिकित्सक या भाषण और भाषा रोग विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं।

 

ऑटिज्म का इलाज कैसे किया जाता है?

 

ऑटिज़्म बीमारी के लिए कोई “इलाज” नहीं हैं, लेकिन उपचार और अन्य उपचार संबंधी विचार लोगों को बेहतर महसूस करने में मदद कर सकते हैं या उनके लक्षणों को कम कर सकते हैं।

 

इस बीमारी के उपचार का कोई एक तरीका नहीं होता है। हर रोगी के लिए अलग तरीके का इस्तेमाल किया जाता है।

 

बिहेवियर और कम्यूनिकेशन थेरेपी

 

इस थेरेपी में बच्चो को लोगों से कैसे बात करना चाहिए ये गुण सीखाए जाते हैं , जिससे वे आसानी से सामाजिक स्थितियों का सामना कर सकें।

 

एजुकेशनल थेरेपी

 

बच्चों की शिक्षा के लिए उन्हें यह थेरेपी दी जाती है। इस थेरेपी में बच्चों से कई तरह की गतिविधि करायी जाती है , जिससे उनके सीखने की क्षमता बढ़ती है।

 

फेमिली थेरेपी

 

इस थेरेपी के दौरान फेमिली के लोग बच्चों को नियमित रुप से व्यवहारिक ज्ञान देते हैं , जिससे उनमें रहन-सहन के गुणों को सिखाया जाता है।

 

दवाएं

 

ऑटिज्म के लक्षणों को कोई भी दवा लेकर ठीक नहीं किया जा सकता हैं , लेकिन इससे कुछ लक्षणों पर काबू किया जा सकता है , जैसे की – अवसाद, उत्तेजक होना, अत्यधिक गुस्सा आना आदि समस्याओं में दवाएं दी जाती हैं।

 

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर से ग्रस्त बच्चों में और भी अन्य कई समस्याएं हो सकती है , जैसे की – इप्लेप्सी, नींद न आने की समस्या और पेट की समस्या। अगर ये सारी समस्या आपको अपने बच्चे में नजर आ रही है , तो आप बच्चों के डॉक्टर से इन समस्याओं के बारे में बात कर सकते हैं और इसका उचित इलाज भी करा सकते हैं। इस बीमारी को नजरअंदाज न करे , ऐसा कोई भी लक्षण नजर आये तो , बच्चो को तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक से जांच कराये।

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