प्रसव (डिलीवरी) के प्रकारों के फायदे और नुकसान

आज कल बहुत सारी गर्भवती महिलाएं बच्चे को जन्म देने के लिए आधुनिक प्रकारों को अपना रही हैं, जिससे उन्हें और उनके होने वाले बच्चे को किसी प्रकार की परेशानी न हो।

 

पर कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं, जिन्हें प्रसव (डिलीवरी) से जुडी पूरी जानकारी न होने की वजह से वे सही तरीके को अपना नहीं पाती हैं आमतौर पर, प्रसव (डिलीवरी) के 2 प्रकार होते हैं, जिन्हें नार्मल डिलीवरी और सीजेरियन डिलीवरी के नामों से जाना जाता है। इन दोनों डिलीवरी के कुछ अपने फायदे और नुकसान हैं।

नार्मल प्रसव (डिलीवरी) के फायदे

 

  • गर्भवती महिला का अस्पताल में कम समय तक रहना ,

 

  • बच्चे के जन्म के बाद कम दर्द होना ,

 

  • महिला की सेहत में जल्दी-से सुधार होना ,

 

  • नार्मल डिलीवरी में शिशु को अपनी मां के साथ प्रारंभिक संपर्क थोड़ा पहले मिल जाता है।

 

  • जल्दी माँ का दूध पीने से बच्चे में पीलिया का खतरा कम होता है और साथ ही दोनों के बीच एक स्वस्थ रिश्ता बनता है।

 

  • नार्मल डिलीवरी के दौरान, इस बात की संभावना रहती है कि योनीमार्ग के चारों ओर की मांसपेशियां नवजात शिशु के फेफड़ों में पाए जाने वाले अमिनोटिक फ्लूइड निकल जाता है। इससे शिशु को जन्म के समय सांस लेने की समस्या कम होती है। बच्चा संक्रमण से बचा रहता है।

 

  • नार्मल प्रसव (डिलीवरी) से जन्म के दौरान बच्चे को बैक्टीरिया का एक सुरक्षा कवच मिलता है जिससे बच्चे को आगे चलकर अस्थमा ,मोटापा ,डायबिटीज आदि होने के चांस कम रहते हैं। साथ ही जन्म वाली नली से निकलने पर बच्चे का सर आकार में रहता है।

 

नार्मल प्रसव (डिलीवरी) के नुकसान

 

  • नॉर्मल डिलीवरी के अपने फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

 

  • लगभग 2 घंटों तक महिला की सेहत में कोई सुधार नज़र न आना ,

 

  • गर्भवती महिला को काफी थकान महसूस होना ,

 

  • नॉर्मल डिलीवरी की वजह से योनि के चारों ओर की त्वचा और उत्तकों में खिंचाव पड़ जाते हैं।

 

  • कुछ स्थिति में यह फट भी सकते हैं और उसकी मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं।

 

  • नॉर्मल डिलीवरी से संबंधित अध्ययनों में पता चला है कि जिन महिलाओं में योनि मार्ग के द्वारा अपने शिशु का प्रसव (डिलीवरी) कराया है आगे चलकर के उनके आंत्र या मूत्र को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियां कमजोर हो जाती है और भी कई समस्याओ का सामना करना पड़ता है।

 

  • नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिला को गुदा और योनिमुख के बीच का भाग – जिसे पेरिनेम – इसमें काफी दर्द रहने की समस्या हो सकती है।

 

सिजेरियन प्रसव (डिलीवरी) के फायदे

 

  • सिजेरियन डिलीवरी में  प्रसव के समय होने वाली पीड़ा नहीं होती। इसमें महिला के शरीर के निचे भाग को सुन्न कर दिया जाता है।

 

  • सिजेरियन डिलीवरी में आप अपनी मनचाही तारीख पर अपना प्रसव करवा सकती है।

 

  • सिजेरियन डिलीवरी में आपके शरीर पर स्ट्रेच मार्क्स नहीं पड़ते।

 

सिजेरियन डिलीवरी के नुकसान

 

  • सिजेरियन डिलीवरी में ज़्यादा खून बहता है और महिला को कमज़ोर महसूस होती है।

 

  •  माँ और बच्चे दोनों का ही वजन बढ़ने लगता है।

 

  • सिजेरियन द्वारा हुए शिशु की इम्युनिटी बहुत ही कमज़ोर होती है।

 

  • स्तनपान करवाने में भी समस्या होती है।

 

  • ऑपरेशन वाली जगह पर महिला को कुछ महीनों से लेकर कई सालों तक दर्द रह सकता है।

 

 

  • ऑपरेशन के दौरान आंत या मूत्राशय की घायल होने की संभावना भी बनी रहती है।

 

  • सिजेरियन डिलीवरी के बाद रिकवरी प्रोसेस बढ़ जाती है। इससे काफी असुविधा तथा दर्द भी होता है।

 

  • प्लसेन्ट (placenta) से संबंधित खतरे भी हर सिजेरियन डिलीवरी के बाद बढ़ते जाते हैं।

 

कई बार कई डॉक्टर भी शिशु की आतंरिक स्थिति देखकर पहले से ही सिजेरियन सलाह देते है। लेकिन कई ऐसा भी है, कि प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद भी सिजेरियन की नौबत आ जाती है। यह स्थिति तब बनती है, जब नार्मल डिलीवरी से शिशु और माँ दोनों की जान को ख़तरा हो। यह एक बहुत बड़ी सर्जरी होती है।

 

गर्भवस्था के समय आपको समय-समय पर चेकअप और डॉक्टर की सलाह लेते रहना चाहिए। ऐसा करने से माँ और बच्चे दोनों ही स्वस्थ रहेंगे ।

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