हर साल इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को रमज़ान के रूप में मनाया जाता है। पुरे विश्व में मुस्लिम समाज के लिये ये महीना पवित्र माना जाता हैं ,जब इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान, मुहम्मद पैगंबर के सामने प्रकट हुई थी। चंद्रमा या हिलाल के दिखने के आधार पर यह पाक महीना 29 से 31 दिन तक रहता है।
रमज़ान में शरीर और आत्मा को शुद्ध करने, ज़रूरतमंदो की मदद करने और संयम बरतने का सबसे सही समय यही महीना माना जाता हैं और इस उपवास को बहुत जरूरी माना जाता हैं परन्तु जो लोग बीमार होते हैं या कोई मानसिक बीमारी से और खासकर बुजुर्ग लोग,और वे महिलाये जो पीरियड्स, या गर्भवती या ब्रेस्टफीडिंग (breastfeeding) कराने वाली हैं और यात्री लोगो के लिए रोजा रखना जरुरी नहीं होता हैं रोजे के उपवास में जो भोजन सूर्योदय से पहले खाया जाता हैं उससे सेहरी कहता हैं और जो भोजन सूर्यास्त के बाद रोजा खोलने के बाद किया जाता हैं इस प्रक्रिया को इफ्तार कहते हैं.
रोज़ा रखना सेहत के लिये फायदेमंद है?
रमज़ान के समय , कुछ घंटों के बाद शरीर में बनने वाला ग्लूकोज़ हमें एनर्जी देने लगता है। वहीं रोज़े के एक दो दिन के बाद शरीर में ग्लाइकोजेनोलिसिस (glycogenolysis) बनने लगता है, जो की लीवर में बनने वाले ग्लाइकोजन से हमें ऊर्जा देता है।
एक बार ग्लूकोज़ मिलने के बाद, शरीर ग्लूकोज़ का इस्तेमाल करता है और फिर वसा जलाने लगता है, जो वजन घटाने का कारण बनता है। इस प्रक्रिया को केटोसिस कहते हैं। कई दिनों या हफ्तों के लंबे समय तक उपवास के साथ, शरीर ऊर्जा के लिए प्रोटीन का उपयोग शुरू करता है। इसके साथ आप अपने शरीर में मौजूद वसा को खोना शुरू कर देते हैं।
रमजान से मधुमेह के मरीज़ कैसे प्रभावित होते हैं.
कुरान के मुताबिक, डायबिटीज़ (Diabetes) से पीड़ित लोगों के लिए रोज़े में छूट है, पर कुछ लोग आत्मसंतुष्टि के लिये खुद को जोखिम में डाल लेते हैं। रमज़ान के समय आपको तीन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
1. हाइपोग्लाइसीमिया-
ब्लडशुगर (Blood Sugar) की मात्रा कम होने पर- जो मरीज़ रोज़ाना डायबिटीज़ की दवाइयों का सेवन करते हैं उनमें हाइपोग्लाइसीमिया (hypoglyemia) होने की संभावना अधिक रहती है। इससे बचने के लिये रोज़े के दौरान ज्यादा काम न करना ही अच्छा विकल्प है।
2. हाइपरग्लाइसीमिया-
ब्लडशुगर की मात्रा अधिक होने पर- ये उन डायबिटीको को होता है, जो पूरे दिन भूखे रहने के बाद ज्यादा भूख लगने पर ओवरईटिंग (Over Dieting) कर लेते हैं। कई घरों में इफ्तार को काफी अच्छे से मनाया जाता है, जिसमें कभी-कभी तला-भुना खाना भी शामिल होता है, इसलिए आपको उचित मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है।
3. डिहाइड्रेशन-
ये उन सभी लोगों के लिए बड़ी समस्या बन जाती है, जो रोज़ा के दौरान पूरे दिन घर से बाहर रहते हैं और उपवास रखते हैं। रमज़ान के दिनों में गर्मी काफी ज्यादा होती है। ऐसे में आप डिहाइड्रेशन (dehydration) का शिकार हो सकते हैं। डिहाइड्रेशन से बचने के लिए दूध और फलों के जूस को शामिल करना चाइये । रमज़ान के दौरान आपको कॉफी, चाय या फिर कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से बचना चाहिए।
डायबिटीज के मरीज़ों के लिये यह खतरा होता है, क्योंकि वे ब्लड शुगर के स्तर के उतार-चढाव, डायबिटीज़ की दवाइओ और इंसुलिन का इस्तेमाल करते हैं। हाइपोग्लाइसिमिया होने के डर की वजह से अकसर डॉक्टर्स डायबिटिक को दवाएं रोकने की सलाह नहीं देते हैं।
रोजे के दौरान डायबिटीज़ मरीज़ों को सूर्योदय की सेहरी और सूर्यास्त के इफ्तार के बाद दवाएं लेनी चाहिए क्योंकि दवाएं न लेने से मरीज को हाइपरग्लिसिमिया का खतरा हो सकता है।
इससे बचने के उपाय:
डॉक्टर्स की सलाह के अनुसार रोज़ेदार सेहरी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर (Fiber) से भरपूर डाइट लें ताकि आपके शरीर में ग्लूकोज़ (glucose) की मात्रा भरपूर रहे और आपको एनर्जी मिलती रहे।
सेहरी के समय ऐसा भोजन खाना चाइये , जिसे पचाने में समय लगे और वह धीरे-धीरे दिनभर आपको एनर्जी देता रहे। सब्जियां, मसूर की दाल, साबूत अनाज, दही, सेम, रोटियां और अंडे की डिशेज आपके लिए फायदेमंद हो सकती हैं। साथ ही पूरे दिन के बाद इफ्तार के वक्त ओवरईटिंग न करे।
वैसे तो रोज़ा तोड़ने का पारंपरिक तरीका पानी के साथ खजूर खाना है l लेकिन खजूर का अधिक सेवन करना ठीक नहीं है। यदि आप जूस पी रहे हैं तो कम मात्रा में ही जूस का सेवन करें। अगर आप रेड मीट (Red Meat) का सेवन कर रहे हैं तो वसायुक्त भोजन से परहेज करें। साथ ही अधिक नमक वाला भोजन न खाएं। घी, मक्खन या तला हुआ भोजन सीमित मात्रा में ही करें।
उपवास में डायबिटीज़ के मरीज़ उपवास में इन बातों का रखें ध्यान:
• रोज़ा रखने से पहले डायबिटीज के मरीजों को डॉक्टर से सलाह ले लेना चाहिए।
• उपवास रखने से पहले उपवास के दौरान होने वाली परेशानी को समझ ले।
• रोज़ा के प्रत्येक दिन के लिये डाइट चार्ट बनाएं और उन खाद्य पदार्थों को शामिल करें जो लंबे समय तक आपको एनर्जी देते रहें।
• हाइपोग्लाइसेमिया से बचने के लिये अपनी दवाओं का समय बदलते रहें।
• ब्लड शुगर की समय समय पर जाँच करवाते रहे ।
• अपने आपको हाइड्रेटेड रखें और कैफीनयुक्त या शर्करा पेय से बचें।
• अपना रोज़ा खोलने के बाद अत्यधिक भोजन का सेवन न करें।
वैसे तो सभी का शरीर एक-सा नहीं होता और डायबिटीज भी एक ही तरह की नहीं होती। जिनमे से कुछ डायबिटिक ऐसे होते हैं जो बिना किसी परेशानी के आराम से रमज़ान का उपवास रख लेते हैं, लेकिन अगर आप किसी एक डायबिटीज़ मरीज़ को जानते हैं, जो रोज़ा के दौरान बीमार न पड़ा हो तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप खुद को भी वैसा मान लेंगे।
उपवास के दौरान डायबिटीज़ रोगियों को कुछ भी हो सकता है। लेकिन आपको रोज़ा के दौरान कोई परेशानी होती है, तो आपको रोज़ा नहीं रखना चाहिए क्योंकि अपने धर्म और परंपरा के प्रति सम्मान दिखाने के और भी तरीके हैं।
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