नशा कोई भी हो, वह हमारी सेहत के लिए खतरनाक है। आज देश ही नहीं दुनियाभर के युवा बड़ी तेजी से नशे (drug) की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। इससे न सिर्फ उनका करियर और जीवन बर्बाद होता है बल्कि परिवार, समाज और देश का भी नुकसान होता है। ऐसे में युवाओं को इस लत से रोकने के लिए जरूरी है कि उनके माता-पिता और अभिभावकों को इस बात की जानकारी दी जाए कि कौन से ऐसे कारक हैं जिसकी वजह से उनके बच्चे नशे की राह पर जा सकते हैं। 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस (International Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking, 26 June) मनाया जाता है .
आइए समझते हैं कि कोई भी नशा क्यों करता है या रिस्क फैक्टर्स कौन से हैं।
आसपास का माहौल
अगर युवाओं के आसपास का माहौल ऐसा है जहां ड्रग्स आसानी से उपलब्ध है। इलाके में गरीबी है या फिर दोस्त ड्रग्स (drugs) लेते हैं। इसके अलावा अगर दोस्त किसी कानूनी पचड़े में फंस गए हैं तो संबंधित युवक के ड्रग्स लेने की आशंका ज्यादा रहती है। हालांकि अगर युवक के आसपास के दोस्त अच्छे हों और वह किसी ऐसे व्यक्ति को अपना रोल मॉडल (roll model) बनाता है जो आज बड़े मुकाम पर पहुंच चुका हो तो उसके नशे से दूर रहने की संभावना बढ़ जाती है।
कम उम्र की संगत
अगर युवक कम उम्र में ही स्मोकिंग (smoking) और ड्रिंकिंग (Drinking) शुरू कर देता है। बहुत जल्दी सेक्स (sex) और ड्रग्स लेने लगता है। नशे के प्रभाव को लेकर अगर वह सकारात्मक सोच रखता है तो उसके आगे चलकर नशे का आदी होने की पूरी आशंका रहती है। बच्चों को इससे बचाने के लिए जरूरी है कि अभिभावक उस पर नजर रखें और उसके दोस्तों पर भी।
फैमिली फैक्टर्स
अगर पैरंट्स ड्रग्स (Parents’ Drugs) लेते हैं या नियम-कानून तोड़ते रहते हैं। अभिभावक बच्चों पर नजर नहीं रखते तो यह उसे नशे के करीब ले जा सकता है। अभिभावकों ने अगर बच्चे को दूर या अलग कर दिया है, वे अनुशासित नहीं रहते, परिवार में विवाद या तलाक के कारण भी घर का माहौल खराब हो जाता है। माता-पिता बच्चे से कोई उम्मीद नहीं करते या फिर वे बेरोजगारी से प्रभावित हैं तो बच्चों के ड्रग्स की तरफ आकर्षित होने की आशंका बढ़ जाती है। परिवार की तरफ से मजबूत बैकअप, माता-पिता के साथ अच्छे रिश्ते होने के साथ ही अगर पैरंट्स (Parents) बच्चे के क्रिया-कलाप पर नजर रखते हैं तो उसकी संगत खराब होने की आशंका काफी कम रह जाती है।
तनाव में हों या मायूस
अगर कोई तनाव (stress) में या मायूस होता है तो उसे यह गलतफहमी हो जाती है कि नशा उसके इस मर्ज की दवा है। धीरे-धीरे व्यक्ति काफी गुस्सैल, ऐंटी-सोशल (Anti-social) होने के साथ ही मानसिक बीमार (Mental sick) भी होने लगता है। बच्चों को इस बात का अहसास कराना जरूरी है कि नशा इलाज नहीं बल्कि उनके सोचने और समझने की शक्ति को खत्म कर देता है। इससे बचाने के लिए युवाओं में विचार कर काम करने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए। उनके आत्मसम्मान को याद दिलाते रहना चाहिए। कुछ उदाहरण देकर समझाया भी जा सकता है कि इसके विनाशकारी परिणाम क्या हो सकते हैं।
भारत में नशे की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में भारत भी हेरोइन (Heroin) का बड़ा उपभोक्ता देश बनता जा रहा है। गौरतलब है कि अफीम (Opium) से ही हेरोइन बनती है। भारत के कुछ भागों में धड़ल्ले से अफीम की खेती की जाती है और पारंपरिक तौर पर इसके बीज ‘पोस्तो’ से सब्जी भी बनाई जाती है। किंतु जैसे-जैसे इसका उपयोग एक मादक पदार्थ के रूप में आरंभ हुआ, यह खतरनाक रूप लेता गया। वर्ष 2001 के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण (National survey) में भारतीय पुरुषों में अफीम सेवन की उच्च दर 12 से 60 साल की उम्र तक के लोगों में 0.7 प्रतिशत प्रति माह देखी गई। इसी प्रकार 2001 के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार ही 12 से 60 वर्ष की पुरुष आबादी में भांग का सेवन करने वालों की दर महीने के हिसाब से तीन प्रतिशत मादक पदार्थ और अपराध मामलों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office) की रिपोर्ट के ही अनुसार भारत में जिस अफीम को हेरोइन में तब्दील नहीं किया जाता, उसका दो तिहाई हिस्सा पांच देशों में इस्तेमाल होता है। ईरान 42 प्रतिशत, अफ़ग़ानिस्तान 7 प्रतिशत, पाकिस्तान 7 प्रतिशत, भारत छह प्रतिशत और रूस में इसका पांच प्रतिशत इस्तेमाल होता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2008 में 17 मीट्रिक टन हेरोइन की खपत की और वर्तमान में उसकी अफीम की खपत अनुमानत: 65 से 70 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है। कुल वैश्विक उपभोग का छह प्रतिशत भारत में होने का मतलब कि भारत में 1500 से 2000 हेक्टेयर में अफीम की अवैध खेती होती है। यह तथ्य वास्तव में ख़तरनाक है।
नशे का शिकार होता युवा वर्ग
मादक पदार्थों (Intoxicants) के नशे की लत आज के युवाओं में तेजी से फ़ैल रही है। कई बार फैशन की खातिर दोस्तों के उकसावे पर लिए गए ये मादक पदार्थ अक्सर जानलेवा होते हैं। कुछ बच्चे तो फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल कि गंध और स्वाद से आकर्षित होते हैं और कई बार कम उम्र के बच्चे आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर इसका आनंद उठाते हैं। कुछ मामलों में इन्हें ब्रेड पर लगाकर खाने के भी उदहारण देखे गए हैं। मजाक-मजाक और जिज्ञासावश किये गए ये प्रयोग कब कोरेक्स, कोदेन, ऐल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस जैसे दवाओं को भी घेरे में ले लेते हैं, पता ही नहीं चलता। फिर स्कूल-कॉलेजों या पास-पड़ोस में गलत संगति के दोस्तों के साथ ही गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं के सेवन की ओर अपने आप कदम बढ़ जाते हैं। पहले उन्हें मादक पदार्थ फ्री में उपलब्ध कराकर इसका लती बनाया जाता है और फिर लती बनने पर वे इसके लिए चोरी से लेकर अपराध तक करने को तैयार हो जाते है। .नशे के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ एच.आई.वी. का कारण भी बनती हैं, जो अंतत: एड्स का रूप धारण कर लेती है। कई बार तो बच्चे घर के ही सदस्यों से नशे की आदत सीखते हैं। उन्हें लगता है कि जो बड़े कर रहे हैं, वह ठीक है और फिर वे भी घर में ही चोरी आरंभ कर देते हैं। चिकित्सकीय आधार पर देखें तो अफीम, हेरोइन, चरस, कोकीन, तथा स्मैक जैसे मादक पदार्थों से व्यक्ति वास्तव में अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है एवं पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है। ये ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ हैं, जिनकी लत के प्रभाव में व्यक्ति अपराध तक कर बैठता है। मामला सिर्फ स्वास्थ्य से नहीं अपितु अपराध से भी जुड़ा हुआ है। कहा भी गया है कि जीवन अनमोल है। नशे के सेवन से यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है।
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