क्या है इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम जाने लक्षण और इसके उपचार

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम एक आम बीमारी है, जो की बड़ी आंत (large intestine) को प्रभावित करती है। इस समस्या से जो लोग पीड़ित होते है, उनके पेट में दर्द और मरोड़ की समस्या होने लगती है। यदि इस समस्या को नजरअंदाज कर दिया जाए तो यह अधिक गंभीर बीमारी हो सकती है।

 

जिन लोगो में यह समस्या होती है, उन्हें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर का खतरा नहीं होता है, लेकिन यह बीमारी दैनिक दिनचर्या को अधिक प्रभावित करती है। इसलिए इस बीमारी के लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सम्पर्क करे और सही समय पर अपना इलाज करा ले।

 

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षण

 

 

  • पेट में कब्ज की समस्या होना।

 

  • डायरिया होना।

 

  • पेट के निचले हिस्से में दर्द और मरोड़ होना, भोजन करने के बाद पेट में मरोड़ और दर्द अधिक बढ़ जाना।

 

  • गैस बनना और सूजन की समस्या होना।

 

  • सामान्य से अधिक पतला या सूखा मल (hard stool) निकलना।

 

  • जिन लोगो को इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम की समस्या होती है, उनमे पेशाब या यौन संबंधी (sexual issues) समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।

 

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के कारण

 

 

  • आंत की मांसपेशियों में संकुचन (contractions) होना

 

  • नर्वस सिस्टम में असामान्यता

 

  • आंत में सूजन होना भी इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षणों में शामिल है

 

  • पेट में संक्रमण होना

 

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम का निदान

 

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के निदान के लिए डॉक्टर मरीज का शारीरिक परीक्षण (physical examination) करते हैं।

 

  • एंडोस्कोपी (Endoscopy)

 

  • पेट का अल्ट्रासाउंड (Ultrasound)

 

  • आंत का एक्स-रे (intestine x ray)

 

 

  • मल का टेस्ट ( Stool tests) किया जाता है

 

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम का इलाज

 

 

  • प्रतिदिन एक्सरसाइज करे, ऐसा करने से इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम  की समस्या खत्म हो जाती है।

 

  • हलके भोजन (light food) का सेवन करें।

 

  • फाइबर युक्त आहार जैसे की – फल, सब्जियां, होल ग्रेन और अखरोट (nut) का सेवन करे।

 

  • भरपूर मात्रा में पानी पिएं।

 

  • स्मोकिंग (Smoking) न करें।

 

  • कम मात्रा में पनीर (cheese) या दूध का सेवन करें।

 

  • मसाले से परहेज करें।

 

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम से बचने के लिए स्ट्रेस कम लेना चाहिए। एक स्टडी में पाया गया है कि साइकोथेरपी (psychotherapy) के जरिए इस समस्या से बचा जा सकता है और अगर समस्या ज्यादा हो रही हो तो इसे नजरअंदाज न करके तुरंत ही डॉक्टर से सम्पर्क करे।

 

 

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