शरीर को स्वस्थ रखने में मौजूद अंग और इसकी कार्यप्रणाली अहम भूमिका निभाती है लेकिन जब ये अंग काम करना बंद या काफी कम कर देते हैं तो कई तरह की दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम की मदद ली जाती है। यह सिस्टम मरीज को जिंदा रखने के साथ उसे रिकवर करने में मदद करता है। लेकिन हर मामले में सफल हो ऐसा जरूरी नहीं। कुछ मामलों में बॉडी इस सिस्टम के बाद भी रिकवर नहीं हो पाती है।
कब पड़ती है लाइफ सपोर्ट सिस्टम की जरूरत
लाइफ सपोर्ट सिस्टम (life support system) की जरूरत तब होती है, जब मरीज की सांस की नली, हृदय, गुर्दे और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम फेल हो जाते हैं. कई बार ब्रेन और नर्वस सिस्टम भी फेल हो सकता है. खास बात यह है कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम के जरिए शरीर के बाकी अंग अगर काम करते हैं तो नर्वस सिस्टम अपने आप काम करने लगता है. इसके अलावा, हृदय (Heart) जब काम करना बंद कर दे तो उसे वापस शुरू करने की कोशिश की जाती है. सीपीआर के जरिए ऐसा किया जाता है. सीपीआर से शरीर में खून और ऑक्सीजन (Oxygen) को भरपूर मात्रा में पहुंचाया जाता है, जिससे इनका सर्कुलेशन (circulation) अच्छा हो सके. धड़कन रुकने पर इलेक्ट्रिक पंप शॉक (Electric pump shock) दिए जाते हैं, जिससे धड़कन नियमित हो सके.
किन अंगों में खराबी होने पर पड़ती है जरूरत
शरीर के कुछ अंगों में खराबी होने के कारण सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ती है, जैसे.
फेफड़े: निमोनिया, ड्रग ओवरडोज, ब्लड क्लॉट, सीओपीडी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, फेफड़ों में इंजरी या नर्व डिजीज के कारण फेफड़े में गंभीर बीमारी होने पर ऐसी स्थिति बनती है।
हृदय:अचानक कार्डियक अरेस्ट (Cardiac arrest) या हार्ट अटैक (heart attack) होने पर।
ब्रेन: ब्रेन स्ट्रोक (Brain stroke) होने या सिर में गंभीर इंजरी होने पर।
लाइफ सपोर्ट कैसे देते हैं
मरीज की हालत बिगड़ने का कारण क्या है इसे ध्यान में रखते हुए लाइफ सपोर्ट दिया जाता है। मरीज को वेंटीलेटर (Ventilator) पर रखकर सबसे पहले ऑक्सीजन दी जाती है ताकि हवा दबाव बनाते हुए फेफड़ों तक पहुंच सके। ऐसा निमोनिया होने या फेफड़ों के फेल्यर (Fail) होने पर किया जाता है। इसमें एक ट्यूब को नाक या मुंह से लगाकर और दूसरा इलेक्ट्रिक पंप (Electric pump) से जोड़ते हैं। कुछ मामलों में मरीज को नींद की दवा (Sleeping medicine) भी देते ताकि वह इस दौरान रिलैक्स फील (Relax Feel) कर सके।
जब हृदय काम करना बंद कर देता है तो इसे वापस शुरू करने की कोशिश की जाती है। इसके लिए सीपीआर दिया जाता है ताकि ब्लड (Blood) और ऑक्सीजन को पूरे शरीर में सर्कुलेट किया जा सके या इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है ताकि धड़कन नियमित हो सकें। इसके अलावा दवाइयां दी जाती हैं।
डायलिसिस (Dialysis) भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम का हिस्सा है। किडनी खराब होने या 80-90 फीसदी काम न करने पर डायलिसिस किया जाता है। इसकी मदद से शरीर में इकट्ठी हुईं जहरीली चीजों (Poisonous things) को फिल्टर करके बाहर निकाला जाता है। इसके साथ एक नली की मदद से पानी और पोषक तत्व शरीर में पहुंचाए जाते हैं।
कब हटाया जाता है लाइफ सपोर्ट सिस्टम
दो स्थिति में ही मरीज का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जाता है. अगर शरीर के अंग उम्मीद मुताबिक सुधार दिखाई दे और अंग काम करना शुरू कर दे तो यह हटाया जा सकता है. लेकिन, अगर एक तय समय तक शरीर के अंगों में सुधार नहीं दिखाई दे तो इसे हटा दिया जाता है. हालांकि, इसे हटाने के लिए परिजनों की सहमति जरूरी है. हालांकि, लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के बाद भी डॉक्टर्स इलाज जारी रखते हैं.
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