जाने प्रसव की अवस्थाएं कितनी होती हैं और कैसे होती हैं

प्रसव का अर्थ है बच्चे के जन्म की प्रक्रिया। यह वह समय होता है जब गर्भवती महिला के गर्भाशय से शिशु बाहर आता है। यह प्रक्रिया एक प्राकृतिक जैविक घटना है जो गर्भधारण के बाद लगभग नौ महीनों के गर्भकाल के अंत में होती है। प्रसव को मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित किया जाता है। आज हम इस लेख में जानेंगे की जाने प्रसव की अवस्थाएं कितनी होती हैं और कैसे होती हैं ?

 

प्रसव का समय हर महिला के जीवन का एक महत्वपूर्ण और खास पल होता है। यह समय जितना भावनात्मक होता है, उतना ही शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है। प्रसव की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है ताकि महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रह सकें। प्रसव को मुख्यतः तीन अवस्थाओं में बांटा जाता है:

 

 

  • प्रारंभिक अवस्था (लेबर का पहला चरण) – इसमें गर्भाशय ग्रीवा का खुलना और संकुचन की शुरुआत होती है।

 

  • सक्रिय अवस्था (लेबर का दूसरा चरण) – इसमें शिशु का जन्म होता है।

 

  • प्रसव के बाद की अवस्था (लेबर का तीसरा चरण) – इसमें प्लेसेंटा (अपरा) का बाहर आना शामिल होता है।

 

 

 

प्रारंभिक अवस्था (लेबर का पहला चरण) क्या हैं ?

 

 

प्रारंभिक संकुचन: यह अवस्था प्रसव की शुरुआत होती है और इसे प्रारंभिक लेबर के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान गर्भाशय के संकुचन (कॉन्ट्रैक्शंस) होते हैं जो गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) को धीरे-धीरे खोलते हैं। प्रारंभिक संकुचन हल्के होते हैं और इनका समय अनियमित होता है। कुछ महिलाओं को पीठ के निचले हिस्से में दर्द महसूस हो सकता है।

 

सक्रिय संकुचन: इस अवस्था में संकुचन अधिक नियमित, तीव्र और लम्बे होते हैं। संकुचन के बीच का समय कम हो जाता है और यह अधिक दर्दनाक हो सकते हैं। इस समय पर गर्भाशय ग्रीवा तेजी से खुलने लगती है, जोकि प्रसव की तैयारी का संकेत है।

 

ट्रांज़िशन अवस्था: यह प्रारंभिक अवस्था का अंतिम चरण होता है, जिसमें गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से 10 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस अवस्था में संकुचन बहुत तीव्र और करीब-करीब होते हैं। यह सबसे कठिन लेकिन सबसे छोटा चरण होता है।

 

 

 

सक्रिय अवस्था (लेबर का दूसरा चरण) क्या होता हैं ?

 

 

धकेलने का समय: यह चरण तब शुरू होता है जब गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह खुल जाती है और महिला को धकेलने की इच्छा होती है। इस दौरान संकुचन बहुत शक्तिशाली होते हैं और बच्चे को जन्म नहर (बर्थ केनाल) के माध्यम से बाहर निकालने में मदद करते हैं।

 

बच्चे का जन्म: धकेलने की प्रक्रिया के दौरान, सिर पहले बाहर आता है, इसके बाद बाकी शरीर। यह समय भावनात्मक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह वह पल होता है जब माता-पिता पहली बार अपने बच्चे को देखते हैं। जन्म के तुरंत बाद बच्चे की सांस लेने की प्रक्रिया शुरू होती है और डॉक्टर या दाई उसकी स्थिति का मूल्यांकन करते हैं।

 

 

 

प्रसव के बाद की अवस्था (लेबर का तीसरा चरण) क्या होता हैं ?

 

 

प्लेसेंटा का बाहर आना: बच्चे के जन्म के बाद, प्लेसेंटा (अम्बिलिकल कॉर्ड के साथ) गर्भाशय से अलग होकर बाहर आती है। यह प्रक्रिया आमतौर पर 5 से 30 मिनट तक का समय लेती है। इस अवस्था में हल्के संकुचन होते हैं जो प्लेसेंटा को गर्भाशय से अलग करने में मदद करते हैं।

 

गर्भाशय का सिकुड़ना: प्लेसेंटा के बाहर आने के बाद गर्भाशय धीरे-धीरे सिकुड़ता है जिससे रक्तस्राव कम होता है। इस प्रक्रिया को यूटरिन इंवोल्यूशन कहते हैं। यह प्रसव के बाद की देखभाल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

 

 

 

प्रसव के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें कौन-कौन सी होती है ?

 

 

चिकित्सकीय सहायता: प्रसव के दौरान चिकित्सकीय सहायता बहुत महत्वपूर्ण होती है। डॉक्टर या दाई की देखरेख में प्रसव की प्रक्रिया सुचारू रूप से संपन्न होती है। चिकित्सकीय टीम यह सुनिश्चित करती है कि मां और बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।

 

मनोवैज्ञानिक समर्थन: प्रसव के दौरान भावनात्मक समर्थन भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। परिवार के सदस्यों, विशेषकर जीवन साथी का साथ और प्रोत्साहन महिला के लिए मानसिक रूप से सहायक हो सकता है।

 

प्रसव के दौरान स्थिति: प्रसव के दौरान महिला विभिन्न स्थितियों में रह सकती है, जैसे कि बैठना, लेटना, या घुटनों के बल रहना। हर महिला की स्थिति में आराम और सुविधानुसार परिवर्तन हो सकता है। कुछ महिलाओं को विशिष्ट स्थिति में अधिक आराम महसूस होता है।

 

दर्द निवारण विकल्प: प्रसव के दौरान दर्द को कम करने के लिए विभिन्न विकल्प उपलब्ध होते हैं। इनमें एपिड्यूरल, नाइट्रस ऑक्साइड गैस, या प्राकृतिक विधियों जैसे कि श्वास तकनीक, पानी में जन्म, और म्यूजिक थैरेपी शामिल हैं। हर महिला को अपने डॉक्टर से परामर्श करके अपने लिए सबसे उचित विकल्प चुनना चाहिए।

 

 

 

प्रसव के बाद की देखभाल कैसे करनी चाहिए ?

 

 

मां और बच्चे की जांच: प्रसव के बाद, मां और बच्चे दोनों की चिकित्सा जांच की जाती है। बच्चे की शारीरिक स्थिति, श्वसन, और अन्य महत्वपूर्ण चिह्नों की जांच होती है। मां की स्थिति भी देखी जाती है और किसी भी संभावित समस्याओं का उपचार किया जाता है।

 

स्तनपान: प्रसव के बाद, बच्चे को तुरंत मां का दूध पिलाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। स्तनपान से न केवल बच्चे को पोषण मिलता है, बल्कि मां और बच्चे के बीच बंधन भी मजबूत होता है। इसके अलावा, स्तनपान से मां के गर्भाशय का सिकुड़ना भी तेज होता है।

 

आराम और पोषण: प्रसव के बाद मां को पर्याप्त आराम और सही पोषण की आवश्यकता होती है। शारीरिक और मानसिक पुनरुत्थान के लिए यह बहुत जरूरी है। पौष्टिक भोजन और तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए और जितना संभव हो सके आराम करना चाहिए।

 

परिवार और समुदाय का समर्थन: प्रसव के बाद, परिवार और समुदाय का समर्थन महिला के लिए महत्वपूर्ण होता है। घर के कामों में सहायता, मानसिक प्रोत्साहन, और शिशु की देखभाल में सहयोग से महिला को स्वास्थ्य लाभ में मदद मिलती है।

 

 

निष्कर्ष:

 

 

प्रसव की प्रक्रिया जीवन का एक अद्वितीय और अविस्मरणीय अनुभव होती है। इसे समझने और इसके लिए तैयार रहने से महिलाएं इसे बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं। हर महिला का अनुभव अलग होता है और हर प्रसव की प्रक्रिया अद्वितीय होती है। चिकित्सकीय सहायता, परिवार का समर्थन, और सही जानकारी के साथ, महिलाएं इस विशेष समय को सकारात्मक और सुखद बना सकती हैं।

 

 

 

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