थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ घनास्त्रता

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम एक गंभीर रक्त विकार है जिसमें घनास्त्रता हो सकती है। घनास्त्रता टीटीएस का एक आम लक्षण है जो रक्त प्रवाह में बाधा डाल सकता है। घनास्त्रता के कारण धमनियों में रक्त का थक्का जम सकता है जिससे स्ट्रोक, हृदय रोग और अन्य जटिलताएँ हो सकती हैं।

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के मरीजों को घनास्त्रता के लक्षणों का ध्यान रखना चाहिए और डॉक्टर से नियमित रूप से परामर्श करना चाहिए। घनास्त्रता के जोखिम को कम करने के लिए दवाइयों, जीवनशैली में बदलाव और नियमित चिकित्सीय जाँच आवश्यक है। टीटीएस के सही इलाज और प्रबंधन से घनास्त्रता और उससे होने वाली जटिलताओं से बचा जा सकता है।

 

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम क्या है?

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम या टीटीएस एक ऐसी स्थिति है जिसमें थ्रोम्बोसाइट्स नामक रक्त कणिकाओं की संख्या में कमी हो जाती है। थ्रोम्बोसाइट्स रक्त के थक्के बनाने में मदद करते हैं। इनकी कमी से रक्तस्राव बढ़ जाता है।

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम एक रक्तस्रावी विकार है जिसमें शरीर में थ्रोम्बोसाइट्स की संख्या 10,000 से कम हो जाती है। थ्रोम्बोसाइट्स रक्त में पाए जाने वाले छोटे कण होते हैं जो रक्तस्राव रोकने में मदद करते हैं। टीटीएस में थ्रोम्बोसाइट्स की कमी के कारण रक्त ठीक से जम नहीं पाता और आसानी से रक्तस्राव होने लगता है।

 

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के कारण क्या हैं ?

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से सबसे आम कारण आनुवंशिक होते हैं। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम एक आनुवंशिक विकार है जो तब होता है जब रक्त प्लेटलेट्स के निर्माण में शामिल जीनों में गड़बड़ी हो जाती है।

 

 

कुछ आनुवंशिक विकार जो टीटीएस का कारण बन सकते हैं:

 

 

  • फैनकोनी एनीमिया: यह एक आनुवंशिक विकार है जिसमें बोन मैरो में रक्त कोशिकाओं का निर्माण कम हो जाता है। इससे थ्रोम्बोसाइटोपेनिया हो सकता है।

 

  • बर्नार्ड-सौलियर सिंड्रोम: यह एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जो प्लेटलेट उत्पादन में समस्या पैदा करता है।

 

  • मायलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम: यह एक गंभीर आनुवंशिक विकार है जो मेगाकार्योसाइटों (बड़े रक्त कोशिकाओं) के विकास को प्रभावित करता है।

 

  • वोन विलेब्रांड डिसीज: यह एक आनुवंशिक बीमारी है जो रक्त प्लेटलेट की कमी का कारण बनती है।

 

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के लक्षण क्या हो सकते हैं ?

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के कई लक्षण हो सकते हैं, जिनमें से सबसे आम निम्नलिखित हैं:

 

 

  • त्वचा रक्तस्राव – यह थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम का सबसे आम लक्षण है। शरीर के किसी भी हिस्से में, आमतौर पर टांगों और हाथों में छोटे लाल धब्बे या चकत्ते दिखाई दे सकते हैं। ये आमतौर पर बिना किसी चोट के अचानक शुरू हो जाते हैं।

 

  • मांसपेशियों में दर्द – थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के कारण मांसपेशियों में अक्सर दर्द होता है। यह दर्द आमतौर पर पैरों और जांघों में होता है, लेकिन कहीं भी हो सकता है। दर्द अक्सर गहरा और तीव्र होता है।

 

  • अन्य लक्षण: अन्य लक्षणों में सिरदर्द, सूजन, जोड़ों में दर्द, बुखार, थकान और वजन घटना शामिल हैं। कुछ मामलों में, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम फेफड़ों, दिल या मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है, जिससे अतिरिक्त लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।

 

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम का निदान किस प्रकार होते हैं ?

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम का निदान करने के लिए डॉक्टर आपके लक्षणों, शारीरिक परीक्षण और रक्त परीक्षणों के आधार पर निर्णय लेते हैं।

 

 

  • रक्त परीक्षण – ये थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के निदान में महत्वपूर्ण हैं।

 

  • प्लेटलेट काउंट – यह खून में प्लेटलेट्स की संख्या बताता है। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम में यह कम हो जाता है।

 

  • प्रोथ्रोम्बिन टाइम (PT) और एक्टिवेटेड पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टाइम – ये खून के थक्के बनने का समय बताते हैं। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम में ये बढ़ जाते हैं।

 

  • फाइब्रिनोजेन, D-डाइमर और फिब्रिन डिग्रेडेशन प्रोडक्ट्स – ये खून के थक्के बनने में सहायक प्रोटीन्स का स्तर बताते हैं, जो में कम हो जाते हैं।

 

 

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम में घनास्त्रता

 

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम में थ्रोम्बोसाइट्स (रक्त पिंडों) की संख्या बहुत कम हो जाती है। थ्रोम्बोसाइट्स रक्त को गाढ़ा बनाने में मदद करते हैं। इनकी कमी से रक्त पतला पड़ जाता है और इससे खून बहने की समस्या हो सकती है।

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम में थ्रोम्बोसाइट की संख्या 20,000 से भी कम हो जाती है (सामान्य संख्या 1.5 लाख से 4 लाख होती है)। इस कमी से रक्त में घनास्त्रता आ जाती है। घनास्त्रता में रक्त में थ्रोम्बोसाइट्स की कमी से रक्त गाढ़ा और चिपचिपा हो जाता है।

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के कारण घनास्त्रता होने से रक्त संचार में बाधा आती है और शरीर के कई अंगों में रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है। इससे अंग नुकसान पहुंचा सकते हैं।

 

 

 

घनास्त्रता के लक्षण क्या होते हैं ?

 

 

घनास्त्रता में मुख्य लक्षण फेफड़ों और हृदय पर दबाव है। जब रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या अधिक हो जाती है, तो वे एक-दूसरे से चिपकने लगते हैं। इससे रक्त का प्रवाह धीमा पड़ जाता है और बहुत अधिक प्लेटलेट्स होने पर रक्त वाहिकाओं में जमाव हो सकता है। जब यह जमाव फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं में होता है, तो फेफड़े पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पा पाते। इससे सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। कई बार तो फेफड़ों में खून के थक्के भी बन सकते हैं, जिससे श्वसन संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

 

हृदय पर भी घनास्त्रता का बुरा प्रभाव पड़ता है। जब प्लेटलेट्स की अधिकता से रक्त का प्रवाह धीमा पड़ता है, तो हृदय को भी पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता। इससे हृदय दर बढ़ सकती है और सीने में दर्द भी हो सकता है। कई बार तो हृदय में भी थक्के जम सकते हैं, जिससे हृदयाघात जैसी गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार, घनास्त्रता फेफड़ों और हृदय दोनों पर खतरनाक प्रभाव डालती है। इसलिए टीटीएस के मरीजों को घनास्त्रता के लक्षणों के प्रति सचेत रहना चाहिए और समय रहते चिकित्सक से संपर्क कर इलाज शुरू करवाना चाहिए।

 

 

घनास्त्रता का इलाज क्या हैं ?

 

 

घनास्त्रता के इलाज के लिए निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध हैं:

 

 

  • थ्रोम्बोसाइट ट्रांसफ्यूजन – यह घनास्त्रता का सबसे प्रभावी इलाज है। इसमें रक्त में प्लेटलेट्स की कमी होने पर थ्रोम्बोसाइट्स का ट्रांसफ्यूजन किया जाता है। यह तुरंत लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

 

  • दवाएं – कुछ दवाएं जैसे कि कॉर्टिकॉस्टेरॉयड और इम्यूनोग्लोबुलिन भी घनास्त्रता के इलाज में प्रयोग की जाती हैं। ये प्लेटलेट कार्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

 

  • स्प्लेनेक्टॉमी – कुछ मामलों में, जब थ्रोम्बोसाइट ट्रांसफ्यूजन पर्याप्त न हो, स्प्लीन (तिल्ली) को हटाने की ज़रूरत हो सकती है। यह थ्रोम्बोसाइट की उत्पादन क्षमता को बढ़ा देता है।

 

 

 

 

 

घनास्त्रता से बचाव के उपाय किस प्रकार हो सकते हैं ?

 

 

घनास्त्रता से बचने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:

 

 

  • थ्रोम्बोसाइट ट्रांसफ्यूज़न – यदि रक्तस्त्राव अधिक हो तो थ्रोम्बोसाइट ट्रांसफ्यूज़न दिया जा सकता है। इससे थ्रोम्बोसाइट्स की संख्या बढ़ेगी और रक्तस्राव रुकेगा।

 

  • दवाएं – डॉक्टर एंटीप्लेटलेट दवाएं जैसे एस्पिरिन या क्लोपिडोग्रेल दे सकते हैं जो थ्रोम्बोसाइट्स को एकत्रित होने से रोकती हैं।

 

  • विटामिन के और एंटीऑक्सीडेंट – विटामिन सी, विटामिन ई और बीटा कैरोटीन जैसे एंटीऑक्सीडेंट लेने से थ्रोम्बोसाइट्स को सुरक्षित रखा जा सकता है।

 

  • हाइड्रेशन – पर्याप्त मात्रा में पानी पीना रक्त को पतला रखकर थ्रोम्बोसाइट्स के जमाव को कम करता है।

 

  • व्यायाम – नियमित व्यायाम थ्रोम्बोसाइट्स को सक्रिय रखता है और उनके एकत्रित होने को रोकता है।

 

  • धूम्रपान बंद करना – धूम्रपान थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम और घनास्त्रता का प्रमुख कारण है। धूम्रपान छोड़ने से इन स्थितियों में सुधार हो सकता है।

 

  • व्यायाम – नियमित रूप से व्यायाम करने से रक्त परिसंचरण बेहतर होता है, जिससे थक्के बनने का ख़तरा कम हो जाता है।

 

  • स्वस्थ आहार – स्वस्थ आहार जिसमें हरी सब्जियाँ, फल, साबुत अनाज शामिल हों, लेना चाहिए। वसायुक्त और नमकीन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।

 

 

 

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